हज़ारीबाग :- हज़ारीबाग जिले के प्रसिद्ध नृसिंह स्थान मेले की जमीन पर जाली हुकुमनामा के खेल का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि अवधूत आश्रम शंकरपुर मे जमीन विवाद का मामला सामने आया है। इसमे भी जमीन माफिया और अंचल कर्मियों के गठजोड़ का खुलासा हुआ है। यह मामला प्रकाश में आया है कि कटकमदाग अंचल में मूल्यवान जमीन को जाली हुकुमनामा बनाकर फर्जीवाड़ा कर जमीन को विवादित बनाने का खेल चल रहा है। ताकि जमीन माफियाओं की चांदी हो सके। सिरसी के ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन दिया है। जिसमें अवधूत आश्रम शंकरपुर के सदस्यो पर भू माफिया से साठगांठ कर ग्रामीणों के जमीन का जाली हुकुमनामा बनाकर हड़पने का आरोप लगाया है। ग्रामीणों ने इसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। मुख्यमंत्री को भेजे गए शिकायत पत्र में दिनेश कुमार, कुणाल कुमार, शशिकांत मिश्र, पच्चू राम सहित दर्जनों ग्रामीणों ने कहा है कि आश्रम सदस्य के असामाजिक गतिविधियों से लोग त्रस्त है। संस्था के सदस्य जाली हुकुमनामा बनाकर भू माफिया से सांठगांठ कर किसानों की जमीन को विवादित बनाकर कब्जा मे लेने का प्रयास कर रहे है। पीड़ित किसान राजेंद्र मिश्र उर्फ राजू मिश्रा ने कहा कि अवधूत आश्रम के पास 10 एकड़ 40 डिसमिल जमीन रजिस्टर्ड डीड से प्राप्त है। जबकि वह जाली हुकुमनामा दिखाकर किसानों के अनुमन 25 एकड़ से ज्यादा जमीन पर अपना कब्जा जमाए हुए है। विवाद गहराने के बाद अंचल अधिकारी कटकमदाग और सदर एसडीओ ने भी इसे दोहरी जमाबंदी का मामला बताते आश्रम के सदस्यों के दावे को खारिज भी कर दिया है। एसडीओ के पास भेजें रिपोर्ट में अंचल अधिकारी ने कहा है कि आश्रम की ओर से अशोक मुखर्जी पिता स्व जे मुखर्जी ने अवधूत आश्रम शंकरपुर की जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगाया है। वही राजेंद्र मिश्रा पिता कामेश्वर मिश्रा ग्राम शंकरपुर थाना कटकमदाग ने अवधुत आश्रम पर उनकी खरीदी जमीन को हड़पने का आरोप लगाया है। अंचलाधिकारी ने जांच प्रतिवेदन में कहा है कि मौजा सिरसी नबंर दो, थाना नंबर 121अंतर्गत खाता नंबर 179, प्लॉट नंबर 992, रकबा 1 एकड़ 27 डिसमिल बकाश्त भूमि है। जो राजेंद्र मिश्र के दादा स्वर्गीय रामदयाल मिश्र ने छोटानागपुर बैंक से नीलामी मे खरीदी गई है। जिसका रसीद वर्ष 62 से अभी तक ऑनलाइन कट रहा है। जो पंजी 2 के पृष्ठ संख्या 53 भाग संख्या 4 में अंकित है। वही आश्रम के सदस्यों ने कहा है कि उक्त जमीन की जमाबंदी आश्रम के कृष्णा देवी के नाम से कायम है। जिसका रसीद निर्गत है। जो हुकुमनामा बंदोबस्ती से प्राप्त है। इसके साथ उसी जमीन का जानकी प्रसाद मिश्रा से खरीदगी केवाला भी बताते हैं। इस पर सदर एसडीओ में आपत्ति जताते कहा है कि हुक्मनामा या रजिस्टर्ड डीड दोनों में कौन जायज है। इस पर संदेह जताया है।गलत करने वाला छोड़ जाता है साक्ष्यहुकुमनामा से हुआ इसका खुलासाकानून के विरुद्ध काम करने वाला कोई न कोई साक्ष्य छोड़ जाता है। इसका खुलासा इस मामले में हुआ है। अवधूत आश्रम की ओर से प्रस्तुत किए गए हुकुमनामा मे वर्ष 1918 मे सच्चिदानंद मिश्र का हस्ताक्षर अंग्रेजी में है। जबकि वह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। हिंदी में हस्ताक्षर करते थे। हिंदी हस्ताक्षर से उन्होंने कई जमीनों का रजिस्टर्ड डीड भी किया है। हुकुमनामा मे मौजा सिरसी की जगह खपरियांवा लिखा है। जिसे राजू मिश्रा जाली बताते हैं। कहते हैं कि जमीन पर दखल उनका है। आश्रम के सदस्य जाली हुकुमनामा दिखाकर राजस्व कर्मचारियों के मेल मिलाप से राजस्व के रिकार्ड में हेराफेरी कर रहे हैं। अवधूत आश्रम का रजिस्ट्रेशन किस उद्देश्य हुआ था। उसके क्या क्रियाकलाप है। जो जांच का विषय है।
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