विभावि मानव विज्ञान विभाग में झारखंड के मजदूरों पर लाकडाउन का प्रभाव विषय पर वेबिनार

लाकडाउन में मजदूरों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया, उनकी समस्याओं के निदान के प्रयास संतोषजनक नहीं : प्रो. प्रवीण झा …12 राज्यों के 98 प्रतिभागियों ने लिया भाग ….डिस्कशन और प्रश्नोत्तर काल में दिए विचार, उठाए कई सवाल ….झारखंड की भूमि को कृषि योग्य बनाकर संवारा जा सकता है मजदूरों का जीवनस्तर : डा. एचसी बेहरा ….. अमरनाथ पाठक ……. हजारीबाग। विनोबाभावे विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग में झारखंड के मजदूरों पर लाकडाउन का प्रभाव विषय पर वेविनार का आयोजन 13 मई को दो सत्रों पूर्वाह्न 11 बजे से 11.40 बजे और दोपहर 12 बजे से अपराह्न 12.40 बजे तक आनलाईन किया गया। यह जानकारी देते हुए विभावि के पीआरओ डा. प्सरमोद कुमार ने बताया कि इसमें झारखंड के प्रवासी और दैनिक मजदूरों पर लाकडाउन का प्रभाव, मुद्दे, चुनौतियां एवं उपाय विषयक इस वेबिनार में सामाजिक सुरक्षा, गांव में रोजगार, शहरी गरीबी अर्थव्यवस्था, बाजार, कल्याण एवं विकास योजना, असहाय, कमजोर वर्ग, महिला एवं बाल समस्याएं, वृद्धजन, गांव में प्रवासी मजदूरों की सामाजिक स्वीकारता शामिल है। विषय के ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों में प्रो. प्रवीण झा, सेंटर फार इंफार्मल सेक्टर एवं लेबर स्टडीज जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी नई दिल्ली और डा. एचसी बेहरा, आईएसआई इंस्टीट्यूट आफ नेशनल इंपोर्टेंस भारत सरकार शामिल थे। इस वेबिनार में 12 राज्यों के 98 प्रतिभागियों ने भाग लिया। सेमिनार के संयोजक डा. गंगानाथ झा, विभागाध्यक्ष, मानव विज्ञान, विभावि हजारीबाग थे। प्रथम सत्र के वक्ता प्रो. प्रवीण झा ने भारत में प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि देश में मजदूरों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। जब प्रवासी मजदूर अपने राज्य में वापस आए, तो इन्हें अपने राज्य की सीमा से उनके गांव तक पहुंचाने की और तत्काल में इनकी समस्याओं के निदान के जो उपाय किए जा रहे हैं, वह संतोषजनक नहीं है। प्रवासी मजदूर के साथ-साथ झारखंड के बिहारी मजदूरों के लिए कल्याण एवं विकास योजनाओं के साथ ही साथ वर्तमान में तुरंत जिन समस्याओं से ये जूझ रहे हैं, उनके समाधान का कारगर उपाय करने का प्रयास होना चाहिए। उन्हें सामाजिक सुरक्षा और भोजन तुरंत मुहैया कराने के साथ-साथ, उनके आश्रितों की समस्याओं पर ध्यान देना अत्यावश्यक है। अविलंब इन समस्याओं के निदान के बाद ही इनके लिए रोजगार तथा इनकी आर्थिक स्थिति को संभाला जा सकता है। इसके साथ ही प्रो. झा ने झारखंड के ग्रामीण रोजगार तथा शहरों में मजदूरों के रोजगार के लिए नई संभावनाओं की तलाश को आवश्यक बताया। दूसरे सत्र में डा. एचसी बेहरा ने झारखंड में बेस्ट लैंड और लेबर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि झारखंड में भूमि की कमी नहीं है। यहां कृषि योग्य भूमि तो है, लेकिन उस भूमि पर उपज नहीं हो रहा है। यहां की श्रमशक्ति एवं नई तकनीक का उपयोग कर ऐसी भूमि को उपजाऊ बनाकर वर्तमान समस्याओं का निदान ढूंढ़ा जा सकता है। प्रदेश में मजदूरों के लिए असीम संभावनाएं हैं। इसपर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने गांव में मजदूरों के पंजीयन तथा डाक्युमेंटेशन की आवश्यकताओं को बताते हुए कहा कि झारखंड में विभिन्न जिले के मजदूरों के बीच कुछ सामान्य समस्याएं हैं, तो कुछ क्षेत्रीय समस्याएं। कुछ मजदूर जो बिल्कुल ही भूमिहीन हैं, उन्हें अलग कर उनकी समस्याओं को देखने की आवश्यकता है। इस सत्र में कुल 88 प्रतिभागियों ने भाग लिया। वेबिनार में प्रतिभागियों के लिए डिस्कशन एवं प्रश्नोत्तर के साथ-साथ उनके सुझाव के लिए भी समय दिया गया। इसमें कई प्रतिभागियों ने अपने-अपने सुझाव दिए, वहीं कई ने सवाल भी किए। वेबिनार में मजदूरों की वर्तमान समस्या, उनके भविष्य, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित प्रश्न उठाए गए। प्रतिभागियों ने गांव के प्राथमिक चिकित्सा केंद्र को सशक्त करने की दिशा में योजनासहित त्वरित कार्य को महत्वपूर्ण बताया। जंगल से संबंधित अर्थव्यवस्था, मत्स्य पालन तथा झारखंड के हार्टिकल्चर एवं सब्जी उत्पादन सहित लाह एवं रेशम उद्योग को मजबूत करने के साथ-साथ यहां के संसाधन का राज्य के लोगों के लिए भी उपयोग किए जाने पर जोर दिया। प्रतिभागियों ने कहा कि सिंचाई की कमी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्वस्था सही नहीं है। झारखंड में कई डैम हैं। उस डैम के पानी का उपयोग यहां के लोगों से ज्यादा दूसरे राज्यों द्वारा किया जाता है। इन सब बिन्दुओं पर भी ध्यान देने की आवश्कता है। इससे पहले वेबिनार में सभी का स्वागत करते हुए विषय प्रवेश वेबिनार संयोजन सचिव डा. गंगानाथ झा ने कराया। ……

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