:::::संपादकीय कालम::::: क्या यही राजनीति है विकास का पैमाना डीडीसी की नई सोच ने शहर को दिया है नया अफसाना इस संपाकीय कालम से किसी की वकालत या किसी को आहत करने के लिहाज से नहीं लिखा जा रहा है। इस लेख का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि अगर कोई सकारात्मक और बेहतर कार्य हो, तो उसका स्वात होना चाहिए, न कि नुख्ताचीनी। मानसिकता थोड़ी ऊपर करने की जरूरत है। सिर्फ भाषण देने से नहीं होता है कि हम जाति, धर्म, भेदभाव, ऊंच-नीच से ऊपर उठकर राजनीति कर रहे हैं। स्वस्थ आलोचना अच्छी पहल है, लेकिन विरोध और उसमें भी बदले की राजनीति और श्रेय लेने की होड़ में हम कुछ ऐसा कर बैठते हैं, जिससे बेहतर अवसर भी गवां बैठते हैं। हम बात कर रहे हैं हजारीबाग में ताजातरीन शुभारंभ हुए सिम्पसन पार्क का। डीडीसी विजया जाधव की सकारात्मक सोच ने बंर और वीरान पड़े स्थान में रौनक पैदा कर दी, इससे कतई इनकार नहीं किया जा सकता। यह पार्क आम अवाम के लिए यानि सबके लिए है। आज विरोध करनेवाले भी कल वहां इस पार्क का लुत्फ उठाते देखे जाएंगे। डीडीसी ने हजारीबाग को एक नया धरोहर दे दिया, जिसे हमेशा याद किया जाएगा। फिर आखिर इतना हंगामा क्यों बरपा है। ……सिर्फ इसलिए कि किसे बुलाया गया और किसे नहीं। यह पार्क सबके लिए है, उद्घाटन तो महज औपचारिकता है। जिसे नहीं बुलाया गया, वह भी घूम आएं, तो क्या उन्हें भगा दिया जाएगा। शिलापट पर जो नाम है, क्या वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। क्या ऐसी राजनीति ही विकास का पैमाना है। ….दूसरी बात सिम्पसन के नामकरण का विरोध…तो एक बात बताइए, अबतक कैनेरी हिल के नाम पर बवाल क्यों नहीं उठाया, वह भी अंग्रेजी नामकरण ही है। नाम तो आपने रख दिया सुभाष मार्ग, लेकिन कितनों की जुबां पर चढ़ा। आज भी मसजिद रोड ही क्यों अक्सर जुबां से निकलते हैं। कई चौक-चौराहों पर महापुरुषों की मूर्तियां तो लग गईं, पर उनके नाम से कितने लोग शास्त्री चौक, कर्पूरी चौक और अंबेडकल चौक बोल रहे हैं। लोगों की जुबां पर आज भी इंद्रपुरी चौक, डिस्ट्रिक्ट चौक आदि ही चढ़े हैं। वर्षों पहले ओकनी भुइयां टोली का नामकरण भी आदर्शपुरी किया गया था। रिक्शा और आटो से जाएंगे, तो ढूंढ़ते रह जाएंगे आदर्शपुरी…भुइयां टोली का नाम लेते ही रफ्तार से पहिया उधर बिना बताए दौड़ने लगता है। जीटी रोड को कितने लोग शेरशाह सूरी मार्ग कहते हैं। कहने का आशय यह है कि नाम बदलने से कुछ बदल नहीं जाता। पहले खुद की मानसिकता और नजरिए को बदलिए, फिर सबकुछ बदला हुआ दिख जाएगा। सिम्पसन पार्क ने शहर को जो बदलाव दिया है, जल्द ही यह स्थल भी शहर की नई पहचान बन जाएगा। …..तीसरी बात स्टीमेट, जांच आदि की, तो जिस वक्त यह पार्क बन रहा था, तो उस वक्त जांच की मांग क्यों नहीं की गई। अब जब इसका शुभारंभ हो गया, तो बवेला खड़ा किया जा रहा था। क्या सिर्फ इसलिए कि कुछ जनप्रतिनिधियों को नहीं बुलाया गया। अगर वह इस जलसे में आते, तो दिल पर हाथ रखकर सच और सिर्फ सच बोलिए कि तब भी इसी तरह से हंगामा बरप रहा होता। तब पार्क खूबसूरत हो जाता। इस “इगो प्राब्लम” से जबतक मुक्त नहीं होंगे, तब तक शहर को मिली ऐसी सौगात के प्रति आपका नजरिया नहीं बदलेगा। आप सकारात्मक राजनीति कभी कर ही नहीं सकते। ….कलतक लाकडाउन में डीडीसी गृरीब, असहाय, बेबस, लाचार लोगों की जरूरतों को कर्तव्य समझ समर्पित और निष्ठाभाव से कर रही थीं, तो बहुत अच्छा, तो फिर आज वह खराब कैसे हो गईं और फिर विरोध किसलिए….डीडीसी ने शहर को एक नया अफसाना दिया है। ऐसे मे उनके कार्य को तहेदिल से सैल्यूट करने की जरूरत है, न कि विवाद पैदा करने की। यह आत्ममंथन और आत्मचिंतन का विषय है कि किसी मामले को गहराई से समझने की जरूरत है। नेक पहल के लिए विरोध के स्वर को छोड़ स्वागत की बाहें फैलाने की जरूरत है। यही सच्ची, अच्छी, स्वस्थ और सकारात्मक राजनीति होगी। ……यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं….।।। आलेख-अमरनाथ पाठक