रांची-चुनाव पूर्व वादे और घोषणाओं के तहत किसी तरह का सर्वे या फॉर्म भरवाना चुनाव आयोग की नजर में गलत है। इस बाबत आयोग ने 4 मई 2024 को एक पत्र जारी किया था। जिसमें भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा अपनी प्रस्तावित लाभार्थी योजनाओं के लिए विभिन्न सर्वेक्षणों की आड़ में मतदाताओं का विवरण मांगने की गतिविधियों को गंभीरता से लिया था और इसे प्रतिनिधित्व की धारा 123 (1) के तहत रिश्वतखोरी का भ्रष्ट अभ्यास माना गया था। लोक अधिनियम, 1951। इसमें कहा गया है कि, “कुछ राजनीतिक दल और उम्मीदवार ऐसी गतिविधियों में संलग्न रहे हैं जो वैध सर्वेक्षणों और चुनाव के बाद लाभार्थी-उन्मुख योजनाओं के लिए व्यक्तियों को पंजीकृत करने के पक्षपातपूर्ण प्रयासों के बीच की रेखाओं को धुंधला करते हैं”।
चुनाव पूर्व लुभावने वादे को लेकर फॉर्म भरवाना गलत- चुनाव आयोग
आयोग ने तब मौजूदा आम चुनाव 2024 में विभिन्न उदाहरणों पर ध्यान देते हुए एक सलाह जारी की थी
और सभी राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों को ऐसे कृत तुरंत बंद करने और चुनाव के बाद लाभार्थी-उन्मुख योजनाओं के लिए व्यक्तियों को विज्ञापन/सर्वेक्षण/ऐप के सहारे पंजीकृत करने से रोकने के लिए कहा गया है ।
आयोग ने साफ कहा था कि चुनाव के बाद के लाभों के लिए पंजीकरण करने के लिए व्यक्तिगत निर्वाचकों को आमंत्रित/आह्वान करने का कार्य निर्वाचक और प्रस्तावित लाभ के बीच एक-से-एक लेन-देन संबंध की आवश्यकता का आभास पैदा कर सकता है और इसमें क्विड-प्रो उत्पन्न करने की क्षमता है। -एक विशेष तरीके से मतदान की व्यवस्था जिससे प्रलोभन प्राप्त हो सके।
ज़िले के उपायुक्त को चुनाव आयोग ने मई में ही इस बाबत करवाई का दे चुका है निर्देश
तब आयोग ने सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को वैधानिक प्रावधानों के तहत ऐसे किसी भी विज्ञापन के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।चुनाव आयोग के ऐसे स्पष्ट आदेश के बाद जिस तरह भारतीय जनता पार्टी और अन्य दल चुनाव बाद के घोषणाओं के फॉर्म मतदाताओं से भरवा रहे हैं उसपर लगाम लग सकता है।