हेमंत है तो हिम्मत है, मिलेगी पेंशन, तो नहीं कोई टेंशन…के नारे ने बंटोगे, तो कटोगे…के संदेश को छोड़ दिया मीलों पीछे
रोटी, बेटी, माटी की पुकार… का जुमला भी नहीं आया काम
आदिवासी बाहुल्य राज्य में आदिवासियों की खिलाफत पड़ गया भारी
मोदी-शाह और हिमंता-शिवराज का नहीं चला जादू, गुजरात माॅडल पड़ गया फीका
संपादक (त्वरित टिप्पणी)
फिर से हेमंत सरकार। यह तो उसी दिन तय हो गया था, जब हेमंत सोरेन को जेल हुई थी। इससे आदिवासियों के मन में यह पीड़ा घर कर गई थी कि उनके नेता को एक साजिश के तहत जेल भेजा गया। आदिवासी बाहुल्य राज्य में आदिवासियों की खिलाफत का परिणाम जनता ने दे दिया। इस चुनाव के नतीजे ने इस बात को साबित भी कर दिया। ऊपर से प्रत्याशियों को पार्टी से हाइजैक कर अपनी पार्टी में लाकर चुनाव लड़वाना भी एनडीए को महंगा पड़ गया। इससे भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी के भाव रहे। हेमंत सरकार की मइयां सम्मान योजना भी गोगो दीदी योजना पर आरंभ से ही भारी रही। हेमंत है तो हिम्मत है, मिलेगी पेंशन, तो नहीं कोई टेंशन…का नारा कटोगे, तो बंटोगे और एक हैं, तो सेफ हैं…की आवाज को दबा दिया। बांग्लादेशी घुसपैठियों का मोदी-शाह का मुद्दा भी पीछे छूट गया। चूंकि अगर बांग्लादेशी भारत में घुस रहे हैं, तो इसका जिम्मेवार सबसे पहले झारखंडियों ने केंद्र सरकार को ही माना। या फिर इसे झूठा नारा कह एनडीए के नेताओं के बयान को अपने जनादेश से सिरे से खारिज कर दिया। पिछले कई माह से हिमंता विश्व सरमा और शिवराज सिंह चौहान का कैंप भी भाजपा के काम नहीं आया। लोगों का भरोसा इसलिए भी हेमंत सरकार पर बरकरार रहा, क्योंकि उन्हें कई नौकरियां मिलीं। पारा शिक्षकों के मानदेय पर भी सुनवाई की। अन्य कर्मियों की मांगों पर भी गौर फरमाया। अर्थात रोजगार के मामले में भी हेमंत सरकार ने जनता को विश्वास में लिया। झारखंड एक अलग संस्कृति और सोच की भूमि रही है। यहां धार्मिक मुद्दे बहुत काम नहीं करते। एकाध क्षेत्र में ही ऐसा देखने को मिलता रहा है। यहां लोगों ने यह भी देखा कि किस तरह कोविड के दो साल हेमंत सरकार उसमें उलझी रही और उस वक्त भी अन्य प्रदेशों से प्रवासी मजदूरों को वापस लाने में तत्परता दिखाई थी। उसके बाद बचे तीन साल के अंदर काफी कुछ काम हुआ। विकास, रोजगार समेत अन्य फैक्टर पर जनता ने हेमंत सरकार को फेल नहीं किया। हां यह अवश्य हुआ कि झामुमो की स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन झामुमो, कांग्रेस, राजद समेत इंडिया गठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब रहीं। इसे नकारा नहीं जा सकता कि धुआंधार चुनाव प्रचार में उनकी बड़ी भूमिका बाजीगर की तरह रही। मोदी और शाह के गुजरात माॅडल को झारखंड की जनता ने सिरे से नकार दिया। बंगाल में ममता बनर्जी के मामले में भी यही स्थिति थी। वहीं भी भाजपा की नकारात्मक प्रचार शैली खुद उसी पर भारी पड़ गई। इधर जिस चंपाई सोरेन के मुद्दे के भरोसे भाजपा ने सियासी खेल खेला था, वह भी काम नहीं आया। बहरहाल, अब आगे जनता ने जिन मुद्दों पर हेमंत सरकार को लगातार दूसरी बार मौका दिया है, उस पर खरा उतरने की बारी है। आमजनमानस को यह उम्मीद है कि हेमंत सरकार उनकी आकांक्षाओं को अगले पांच वर्षों में अवश्य पूरा करेगी।