स्वामी दिव्यज्ञान
रांची। झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 ने राज्य की राजनीति को एक नया और निर्णायक मोड़ दिया। जनता ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि वे केवल उन्हीं नेताओं पर भरोसा करेंगे, जो उनकी समस्याओं को समझते हैं और उनके समाधान के लिए ईमानदारी से प्रयास करते हैं। इस चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और उसके नेता हेमंत सोरेन ने अपनी कुशल रणनीति, प्रभावी योजनाओं और जनता से गहरे जुड़ाव के बल पर ऐतिहासिक जीत हासिल की।
इस विजय में ‘HB LIVE’ की सटीक भविष्यवाणी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। HB LIVE ने इंडिया गठबंधन के लिए 52 सीटों की भविष्यवाणी की थी, जबकि गठबंधन ने 56 सीटें जीतीं। 92% तक सटीक भविष्यवाणी ने यह साबित कर दिया कि वर्ल्ड वाइड न्यूज़ ने झारखंड की राजनीति और जनता के मूड को गहराई से समझा।
कल्पना सोरेन का जादू और झामुमो की योजनाओं का प्रभाव
झारखंड मुक्ति मोर्चा की इस विजय में हेमंत सोरेन की पत्नी, कल्पना सोरेन, की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने 90 से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया, जिनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। उनकी भाषण शैली और जमीनी जुड़ाव ने जनता के दिलों को छुआ। हिंदी, अंग्रेजी, सादरी और बंगला जैसी भाषाओं में संवाद कर उन्होंने झारखंड के विभिन्न समुदायों को झामुमो के साथ जोड़ने का काम किया।
उनके भाषणों में महिलाओं और आदिवासी समुदाय की समस्याओं को गहराई से समझने और उनका समाधान सुझाने की झलक दिखी। खासतौर पर “मैय्या सम्मान योजना,” जिसके तहत महिलाओं को ₹1000 की मासिक आर्थिक सहायता दी गई, ने झारखंड के ग्रामीण और शहरी इलाकों में झामुमो का समर्थन मजबूत किया। कल्पना सोरेन की प्रेरक और प्रभावशाली उपस्थिति ने झामुमो के प्रचार अभियान को और अधिक सशक्त बनाया।
हेमंत सोरेन का नेतृत्व और जमीनी रणनीति
हेमंत सोरेन ने इस चुनाव में अपनी नेतृत्व क्षमता और जमीनी जुड़ाव को साबित किया। उन्होंने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का गहन अध्ययन किया और स्थानीय बुद्धिजीवियों, युवाओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को अपनी रणनीति में शामिल किया। उनकी यह रणनीति सुनिश्चित करती थी कि झारखंड की हर पंचायत, गांव और घर तक झामुमो की योजनाएं और नीतियां पहुंचें।
उन्होंने व्यक्तिगत सभाओं और डोर-टू-डोर अभियानों के माध्यम से जनता से सीधा संवाद स्थापित किया। उनका मुख्य ध्यान झारखंड की स्थानीय समस्याओं और उनके समाधान पर केंद्रित था। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह धार्मिक और भावनात्मक मुद्दों को बढ़ावा देकर जमीनी समस्याओं की अनदेखी कर रही है।
भाजपा की रणनीतिक विफलताएं: बाहरी नेतृत्व, सवर्ण मतदाता और अति-हिपोक्रिसी
भाजपा ने इस चुनाव में कई गंभीर रणनीतिक गलतियां कीं। सबसे बड़ी विफलता थी स्थानीय नेतृत्व की अनदेखी और बाहरी नेताओं पर अत्यधिक निर्भरता। बाबूलाल मरांडी जैसे अनुभवी और सशक्त नेता, जिनकी झारखंड के आदिवासी और सवर्ण समुदाय में गहरी पकड़ है, को केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया।
कहां हिमंता बिस्वा सरमा और शिवराज सिंह चौहान को चुनावी प्रभारी बना दिया गया, जबकि लोकसभा चुनाव, जिसमें 51 विधानसभा सीटें शामिल थीं, के प्रभावशाली प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेई को बिल्कुल अलग कर दिया गया। जहां चुनाव हेमंत बनाम बाबूलाल मरांडी होना चाहिए था, वहां हिमंता बनाम हेमंत सोरेन कर दिया गया। इससे इंडिया गठबंधन को यह बताने में सुविधा हुई कि बीजेपी की सरकार एक बाहरी के हाथ में जाने वाली है।
साथ ही, भाजपा अपने पारंपरिक सवर्ण मतदाताओं को भी संतुष्ट रखने में असफल रही। सवर्ण मतदाताओं ने महसूस किया कि पार्टी ने उनके मुद्दों और प्रतिनिधित्व को दरकिनार कर दिया है। बाबूलाल मरांडी जैसे सवर्ण नेता को हाशिए पर रखना और जमीनी मुद्दों की अनदेखी ने सवर्ण समुदाय को नाराज कर दिया, जिसका सीधा लाभ झामुमो और इंडिया गठबंधन को मिला।
भाजपा का मीडिया प्रबंधन भी एक बड़ी विफलता साबित हुआ। उन्होंने भारी-भरकम विज्ञापनों और अतिरंजित प्रचार (हिपोक्रिसी) का सहारा लिया। धर्म परिवर्तन और समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) जैसे मुद्दों को प्रचार का केंद्र बनाते हुए जमीनी समस्याओं की अनदेखी की गई। यह रणनीति जनता को झूठी और अप्रासंगिक लगी, जिससे भाजपा की छवि कमजोर हुई।
झामुमो का सटीक मीडिया प्रबंधन और प्रामाणिकता का प्रभाव
इसके विपरीत, झामुमो ने अपने सीमित संसाधनों का कुशलता से उपयोग करते हुए सटीक और प्रामाणिक मीडिया प्रबंधन किया। उन्होंने प्रचार में जनता की जमीनी समस्याओं को उजागर किया और उनके समाधान के ठोस प्रस्ताव पेश किए।
कल्पना सोरेन और हेमंत सोरेन ने व्यक्तिगत सभाओं, सोशल मीडिया और डोर-टू-डोर अभियानों का प्रभावी उपयोग किया। झामुमो ने दिखाया कि सच्चाई और प्रामाणिकता के माध्यम से जनता का विश्वास जीता जा सकता है। उनका प्रचार अभियान भाजपा के भारी-भरकम और अतिरंजित प्रचार के सामने सटीक और प्रभावशाली साबित हुआ।
महिलाओं और अल्पसंख्यकों का निर्णायक समर्थन
महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय ने इस चुनाव में झामुमो और इंडिया गठबंधन के पक्ष में निर्णायक भूमिका निभाई। “मैय्या सम्मान योजना” ने महिलाओं को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनाया, बल्कि उन्हें झामुमो के साथ भावनात्मक रूप से भी जोड़ा।
क्रिश्चियन और आदिवासी समुदायों ने भी गठबंधन को एकजुट होकर समर्थन दिया। भाजपा के धार्मिक मुद्दों और अतिरंजित प्रचार के बावजूद, अल्पसंख्यकों ने झामुमो पर भरोसा जताया। यह एकजुटता भाजपा के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई और उसकी हार के अंतर को और बढ़ा दिया।
निष्कर्ष : झारखंड को स्पष्ट जनादेश
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 ने यह स्पष्ट कर दिया कि जनता उन्हीं नेताओं पर भरोसा करती है, जो उनकी समस्याओं को समझते हैं और उनके समाधान के लिए काम करते हैं। झामुमो और हेमंत सोरेन की यह जीत भाजपा की रणनीतिक विफलताओं और झामुमो की सटीक रणनीति की सफलता का प्रतीक है।
झामुमो ने प्रामाणिकता और जमीनी जुड़ाव के माध्यम से जनता का भरोसा जीता, जबकि भाजपा की अति-हिपोक्रिसी, सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी और स्थानीय मुद्दों से कटाव उसकी हार के मुख्य कारण बने। यह चुनाव झारखंड की जनता की उम्मीदों, झामुमो के समर्पण और HB LIVE के सटीक भविष्यवाणी की जीत है।