झारखंड विधानसभा चुनाव 2024: रणनीतियों का रण और स्ट्राइक रेट की चुनौती


स्वामी दिव्यज्ञान (यह लेखक के अपने विचार हैंं।)

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बीच ऐसी कांटे की टक्कर देखने को मिली, जिसे झारखंड की राजनीति में लंबे समय तक याद रखा जाएगा। दोनों दलों ने अपने मुद्दों और रणनीतियों के सहारे मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया। लेकिन इस चुनाव में खेल केवल सीटों का नहीं, बल्कि स्ट्राइक रेट का भी था। 81 सीटों पर सत्ता के लिए संघर्ष के बीच यह सवाल उठता है कि किसकी रणनीति कामयाब होगी और कौन इस राजनीतिक रण का विजेता बनेगा।


स्ट्राइक रेट का खेल

81 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 41 सीटों का बहुमत चाहिए। लेकिन भाजपा और झामुमो के लिए यह चुनौती अलग-अलग थी:

भाजपा ने 81 में से 66 सीटों पर चुनाव लड़ा और सरकार बनाने के लिए उसे 41 सीटों पर जीत दर्ज करनी होगी, जिसके लिए 62% का स्ट्राइक रेट चाहिए।

झामुमो ने 81 में से केवल 43 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 41 सीटों तक पहुंचने के लिए 95% का स्ट्राइक रेट चाहिए।

झामुमो की यह स्थिति इसलिए बनी क्योंकि उसने अपने सहयोगी दलों को अधिक सीटें देकर खुद को सीमित कर लिया। दूसरी ओर, भाजपा ने ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़कर अपने कोर वोटबैंक पर भरोसा जताया। लेकिन क्या यह रणनीति भाजपा को जीत दिला पाएगी, या झामुमो की गठबंधन आधारित रणनीति सफल होगी?


भाजपा: सधी हुई रणनीति और टैक्टिकल बढ़त

सहयोगियों पर कम निर्भरता

भाजपा ने अपनी ताकत पर भरोसा जताते हुए 66 सीटों पर खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया। पार्टी ने अपने सहयोगी दलों को केवल 15 सीटें दीं। इस निर्णय ने भाजपा को एक बड़ी बढ़त दी, क्योंकि इससे वह अपने मुद्दों को केंद्र में रख सकी और अपने प्रचार अभियानों को सटीक तरीके से चला सकी। सहयोगियों को कम सीटें देकर भाजपा ने अपनी संगठनात्मक मजबूती का परिचय दिया। यह रणनीति झामुमो के विपरीत थी, जिसने अधिक सीटें बांटकर खुद को सीमित कर लिया।

घुसपैठियों का मुद्दा: मतदाताओं को विभाजित करने का प्रयास

भाजपा ने इस चुनाव में घुसपैठियों के मुद्दे को आक्रामक रूप से उठाया। उसने झामुमो और उसके सहयोगी दलों को बाहरी घुसपैठियों का समर्थक बताते हुए यह तर्क दिया कि ये घुसपैठिए झारखंड की संस्कृति और सुरक्षा के लिए खतरा हैं। यह मुद्दा न केवल भाजपा के कोर वोटबैंक को एकजुट करने में मददगार रहा, बल्कि झामुमो के पारंपरिक वोटबैंक—आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों—के भीतर भी दरार डालने की कोशिश थी।

स्टार प्रचारकों का दमखम

भाजपा ने इस चुनाव में अपने स्टार प्रचारकों की पूरी ताकत झोंक दी। योगी आदित्यनाथ, अमित शाह, हिमंता बिस्वा सरमा, और शिवराज सिंह चौहान जैसे नेताओं ने चतरा, डाल्टनगंज, और हुसैनाबाद जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर बड़ी सभाएं कीं। इन रैलियों ने न केवल भाजपा समर्थकों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व झारखंड के प्रति पूरी तरह गंभीर है।

व्हिस्पर इफेक्ट: गुप्त अभियान की ताकत

भाजपा की व्हिस्पर इफेक्ट रणनीति इस चुनाव का एक अनोखा पहलू थी। इसके तहत, गुप्त रूप से पहुंचे कार्यकर्ताओं ने स्थानीय मतदाताओं से जुड़कर उनकी समस्याओं को समझा और उनकी सोच को प्रभावित किया। यह अभियान झामुमो के गढ़ों में सेंध लगाने का प्रयास था। भाजपा का यह प्रोफेशनल पोल मैनेजमेंट पार्टी के लिए एक मजबूत पक्ष साबित हुआ।


झामुमो: सहयोगियों पर निर्भरता और सीमित क्षेत्रीय प्रभाव

सहयोगियों को अधिक सीटें देना

झामुमो ने 81 में से 38 सीटें कांग्रेस, आरजेडी और अन्य सहयोगी दलों को देकर केवल 43 सीटों पर खुद चुनाव लड़ा। इस निर्णय ने झामुमो को अपने सहयोगियों के समर्थन पर अधिक निर्भर बना दिया। हालांकि, इसने गठबंधन की ताकत को बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन झामुमो के लिए यह दांव चुनौतीपूर्ण हो गया। सीमित सीटों पर चुनाव लड़ने से पार्टी को हर सीट पर जीत हासिल करने का भारी दबाव झेलना पड़ा।

पहले चरण की रणनीतिक कमजोरियां

चुनाव के पहले चरण में झामुमो का प्रदर्शन कमजोर रहा। पार्टी का ध्यान आरक्षित सीटों पर था, लेकिन वहां भी वह अपने कोर वोटबैंक को पूरी तरह साध नहीं पाई। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने भवनाथपुर और भवनाथ सीटों पर तो जोर लगाया, लेकिन मनिका, डाल्टनगंज और हुसैनाबाद जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। इन क्षेत्रों में झामुमो का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा।

दूसरे चरण में सुधार की कोशिश

दूसरे चरण में झामुमो ने अपनी रणनीति में सुधार किया। कांग्रेस और अन्य सहयोगियों के साथ समन्वय बढ़ाया गया और हेमंत सोरेन ने कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया। हालांकि, यह सक्रियता पहले चरण में दिखाई देती तो झामुमो के लिए यह फायदेमंद हो सकता था। लेकिन क्या दूसरे चरण की सक्रियता पहले चरण की कमजोरियों को ढक पाएगी?


इंडिया गठबंधन: प्रचार में तालमेल की कमी

झामुमो, कांग्रेस, और अन्य दलों का गठबंधन, जिसे “इंडिया गठबंधन” कहा गया, प्रचार अभियानों में भाजपा के मुकाबले कमजोर नजर आया।

राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अधिकतर सभाएं कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए कीं।

झामुमो और अन्य सहयोगी दलों के प्रत्याशियों के लिए इस स्तर का प्रचार नहीं दिखा।

दूसरे चरण में हालांकि गठबंधन के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिला, लेकिन यह प्रयास पहले चरण की कमजोरियों को पूरी तरह से दूर नहीं कर सका।


चरणवार चुनावी विश्लेषण

पहला चरण: भाजपा की बढ़त

पहले चरण में भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों और गुप्त अभियानों के सहारे बढ़त बनाई। झामुमो की प्राथमिकता सहयोगी दलों पर अधिक रही, जिससे उसकी कोर सीटों पर सक्रियता कम हो गई। भाजपा ने इसका पूरा फायदा उठाते हुए घुसपैठियों का मुद्दा उठाकर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की।

दूसरा चरण: निर्णायक मुकाबला

दूसरे चरण में झामुमो ने कांग्रेस और अन्य सहयोगियों के साथ बेहतर समन्वय बनाया। इस चरण में झामुमो ने अपने आदिवासी और अल्पसंख्यक वोटबैंक को मजबूत करने का प्रयास किया। हालांकि, भाजपा ने अपने आक्रामक प्रचार अभियान और मजबूत संगठन के बल पर अपनी बढ़त बनाए रखी।


स्ट्राइक रेट: कौन कितनी चुनौती झेल सकता है?

भाजपा:

भाजपा को 66 सीटों में से 41 सीटें जीतने के लिए 62% का स्ट्राइक रेट चाहिए। पार्टी का मजबूत संगठन, स्टार प्रचारक, और आक्रामक प्रचार अभियान इस लक्ष्य को हासिल करने में सहायक हो सकते हैं।

झामुमो:

झामुमो को 43 सीटों में से 41 सीटें जीतने के लिए 95% का स्ट्राइक रेट चाहिए। सीमित सीटों और पहले चरण की कमजोरियों को देखते हुए यह लक्ष्य बेहद कठिन नजर आता है।


निर्णायक सवाल: कौन जीतेगा यह रण?

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 केवल सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीतियों, प्रचार अभियानों और गठबंधन की ताकत का परीक्षण है।

क्या भाजपा की आक्रामक रणनीति और मजबूत संगठन उसे बहुमत दिलाएगा?

या झामुमो अपने गठबंधन के सहारे इस कठिन चुनौती को पार कर पाएगा?

यह चुनाव झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ने वाला है। जनता का फैसला ही तय करेगा कि इस रण का असली विजेता कौन होगा।

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