स्वामी दिव्यज्ञान
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन ने जोरदार जीत दर्ज की। झामुमो, कांग्रेस, राजद और सीपीआई के इस गठबंधन ने कुल 56 सीटों पर विजय प्राप्त की। झामुमो ने 34, कांग्रेस ने 16, राजद ने 4, और सीपीआई ने 2 सीटें जीतीं। यह जीत इंडिया गठबंधन की मजबूत पकड़ और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जनता के भरोसे का प्रमाण है।
हेमंत सोरेन, जो झारखंड की राजनीति में तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में अनुभव रखते हैं, इस बार और भी अधिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। गठबंधन की सफलता के बाद मंत्रिमंडल गठन को लेकर उनके सामने कई स्तरों पर जटिल समस्याएँ हैं।
पहली चुनौती है गठबंधन के घटक दलों को संतुष्ट करना। झामुमो, कांग्रेस और राजद के नेता अपने-अपने दलों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व की उम्मीद कर रहे हैं। दूसरी चुनौती है क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बनाए रखना। झारखंड में छह प्रमंडलों (संताल परगना, कोल्हान, पलामू, उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर और गढ़वा) के आधार पर संतुलित प्रतिनिधित्व देना आसान कार्य नहीं है।
तीसरी चुनौती है सामाजिक और सामुदायिक दबाव। आदिवासी, कुर्मी, अनुसूचित जाति, मुस्लिम, ईसाई और फारवर्ड समुदाय के नेताओं की अपेक्षाएँ मंत्रिमंडल गठन के दौरान ध्यान में रखनी होंगी। चौथी बड़ी चुनौती महिलाओं और युवाओं को उचित प्रतिनिधित्व देने की है, जो झारखंड के सामाजिक-राजनीतिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
यह स्पष्ट है कि मंत्रिमंडल का गठन केवल प्रतिनिधित्व का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह झारखंड की आगामी राजनीति की दिशा और गठबंधन की आंतरिक स्थिरता का भी निर्धारण करेगा।
क्षेत्रीय और जातीय संतुलन की प्राथमिकता
झारखंड के छह प्रमंडलों से संतुलित प्रतिनिधित्व देना मुख्यमंत्री के लिए प्राथमिकता होगी। संताल परगना और कोल्हान जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में झामुमो की मजबूत पकड़ है, लेकिन पलामू और उत्तरी छोटानागपुर जैसे क्षेत्रों से भी संतुलन साधना जरूरी है, जहाँ कांग्रेस और राजद का प्रभाव है।
जातीय संतुलन के संदर्भ में, आदिवासी, कुर्मी, अनुसूचित जाति, मुस्लिम, ईसाई और फारवर्ड समुदाय की भागीदारी को सुनिश्चित करना मुख्यमंत्री की रणनीति का मुख्य हिस्सा होगा।
झामुमो से संभावित मंत्रियों की सूची
- मथुरा प्रसाद महतो (टुंडी)
कुर्मी समुदाय के वरिष्ठ नेता और झामुमो के अनुभवी चेहरा। पिछली बार उनकी दावेदारी उनके दामाद के भाजपा में चले जाने के कारण कमजोर हो गई थी। लेकिन इस बार उनके दामाद ने इंडिया गठबंधन के तहत मांडू से चुनाव लड़ा है, जिससे उनकी संभावना मजबूत हुई है। - दीपक बिरुआ (चाईबासा)
कोल्हान क्षेत्र से आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका अनुभव और नेतृत्व क्षमता मंत्रिमंडल में उन्हें स्थान दिला सकती है। - रामदास सोरेन (घाटशिला)
आदिवासी समुदाय के वरिष्ठ नेता। चंपई सोरेन के भाजपा में जाने के बाद उनकी दावेदारी और भी मजबूत हुई है। - अनंत प्रताप देव (भवनाथपुर)
पलामू प्रमंडल से झामुमो के इकलौते विधायक। उन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री को हराया है। राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और क्षेत्रीय संतुलन के लिए उनका नाम संभावित है। - लुईस मरांडी (जामा)
ईसाई और आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं। भाजपा से झामुमो में आने के बाद उन्होंने जामा से चुनाव लड़ा। हालांकि, संथाल परगना में पहले से अधिक दावेदार होने के कारण उनकी संभावना कम हो सकती है। - उमाकांत रजक (बेरमो)
अनुसूचित जाति के विधायक। पिछले बार के अनुसूचित जाति मंत्री वैद्यनाथ राम चुनाव हार चुके हैं। इन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता अमर बावरी को हराया है, जिससे उनकी दावेदारी मजबूत है। - सुदिव्या कुमार सोनू (गिरिडीह)
ओबीसी समुदाय के युवा नेता। उन्होंने झामुमो की वरिष्ठ नेत्री कल्पना सोरेन की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी मेहनत और क्षेत्रीय कनेक्शन के कारण उनकी दावेदारी पर विचार किया जा सकता है। - हफीजुल हुसन : झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और मधुपुर से विधायक पूर्व कैबिनेट मंत्री हफीजुल हसन की संभावना जबरदस्त है क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के दो अल्पसंख्यक जीते विधायकों में से यह एक है।
कांग्रेस के संभावित मंत्री
- डॉ. रामेश्वर उरांव (लोहरदगा)
चर्च के करीबी और कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता। विपरीत परिस्थितियों में सीट बचाने के साथ-साथ आदिवासी और ईसाई समुदाय में गहरी पैठ रखते हैं। - दीपिका पांडे सिंह (महागामा)
महिला नेतृत्व का प्रमुख चेहरा। गोड्डा लोकसभा सीट पर टिकट नहीं मिलने के बावजूद पार्टी में उनके योगदान के कारण उनकी दावेदारी मजबूत है। - प्रदीप यादव (पोड़ैयाहाट)
पांच बार के विधायक और सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक। उनका अनुभव और संताल परगना में प्रभाव मंत्रिमंडल में उन्हें स्थान दिला सकता है। - शिल्पी नेहा तिर्की (मांडर)
ईसाई समुदाय से आती हैं। उनकी संभावना कम है, लेकिन उनके पिता बंधु तिर्की के राजनीतिक दबाव और प्रभाव के कारण उनकी दावेदारी पर विचार हो सकता है। - सोनाराम सिंकू (मनोहरपुर)
कोल्हान प्रमंडल से कांग्रेस के इकलौते विधायक। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के हारने के बाद उनकी दावेदारी मजबूत है। - डॉ. इरफान अंसारी (जामताड़ा)
मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नेता। कांग्रेस के प्रमुख चेहरों में गिने जाते हैं।
राजद और अन्य दलों से संभावित नाम
- संजय यादव (गोड्डा)
राजद प्रदेश अध्यक्ष और लालू यादव के करीबी। हालांकि, संथाल परगना से पहले ही कई मंत्री हो सकते हैं, जिससे उनकी संभावना कम हो सकती है। - संजय सिंह यादव (छतरपुर)
यादव समुदाय के नेता। पलामू प्रमंडल का प्रतिनिधित्व करते हैं। - सीपीआई से संभावित नाम
सीपीआई के दो विधायकों में से एक को मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है।
मंत्रिमंडल गठन की चुनौती और निष्कर्ष
हेमंत सोरेन के सामने मंत्रिमंडल गठन को लेकर कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। गठबंधन के घटक दलों की अपेक्षाएँ, क्षेत्रीय और जातीय संतुलन, और महिला व युवा नेतृत्व को प्राथमिकता देना उनकी रणनीति का हिस्सा होगा।
मथुरा प्रसाद महतो, रामदास सोरेन, अनंत प्रताप देव, दीपक बिरुआ, और उमाकांत रजक जैसे नाम संभावनाओं के करीब हैं। वहीं, कांग्रेस से डॉ. रामेश्वर उरांव, दीपिका पांडे सिंह, और प्रदीप यादव जैसे अनुभवी नेता दावेदारी में आगे हैं।
यह मंत्रिमंडल न केवल झारखंड की राजनीति में गठबंधन की स्थिरता का प्रतीक होगा, बल्कि यह सरकार की प्राथमिकताओं का भी दर्पण होगा। जनता के विश्वास पर खरा उतरने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सामंजस्यपूर्ण, समावेशी, और परिणामोन्मुखी मंत्रिमंडल का गठन करना होगा। यह झारखंड की राजनीति और विकास के लिए एक नई दिशा तय करेगा।