देशभर की 120 में खाने योग्य मशरूम की महज 11 प्रजातियां : चंचिला कुमार

खेती एवं उत्पादन से लेकर बाजार और बेहतर मुनाफा की बताई गई तरकीब

मशरूम की खेती को लेकर आईसेक्ट विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन

हजारीबाग। बीते 16 जनवरी से मशरूम की खेती एवं उत्पादन को लेकर आईसेक्ट विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन शनिवार को हो गया। शनिवार को कार्यक्रम के अंत में शामिल सभी प्रशिक्षणार्थियों एवं छात्र-छात्राओं को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। इससे पूर्व केवीके कोडरमा की मशरूम प्रशिक्षक व कार्यक्रम की मुख्य वक्ता चंचिला कुमार, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पीके नायक, कुलसचिव डॉ मुनीष गोविंद, कृषि संकायाध्यक्ष डॉ अरविंद कुमार, विभागाध्यक्ष डॉ सत्यप्रकाश विश्वकर्मा, प्रभात किरण, प्रतिभा हेंब्रम, फरहीन सिद्दीकी सहित अन्य के हाथों दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। मुख्य वक्ता केवीके कोडरमा की मशरूम प्रशिक्षक चंचिला कुमार ने मशरूम की खेती एवं उत्पादन से लेकर बाजार पहुंचाकर बेहतर मुनाफा कमाने तक की तरकीब विस्तार से बतायी। उन्होंने बताया कि वैसे तो मशरूम की 120 प्रजातियां पूरे देश में पायी जाती हैं, लेकिन उसमें खाने योग्य महज 11 प्रजातियां ही है। उन्होंने बताया कि झारखंड में मशरूम की आयस्टर, बटन, मिल्की और पैडी प्रजातियां ही उत्पादित की जाती है। उन्होंने बताया कि पोषक तत्वों और व्यापारिक दृष्टिकोण दोनों लिहाज़ से मशरूम कृषकों के लिए बेहतर साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि महज़ 50 रूपये में 10 किग्रा. मशरूम की खेती की शुरुआत की जा सकती है। इस लागत में 3.5 किग्रा. मशरूम उत्पादन किया जा सकता है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पीके नायक ने कहा कि प्रशिक्षण पाने वाले सभी प्रशिक्षणार्थियों से उम्मीद होगी कि आने वाले समय में इस प्रशिक्षण में बतायी और सिखायी गई तरकीब को अपनाकर अपनी तरक्की का मार्ग प्रशस्त करेंगे। कुलसचिव डॉ मुनीष गोविंद ने कहा कि वाकई मशरूम कई पोषक तत्वों से भरपूर होती है और इसका बाजार मांग भी ज्यादा है। ऐसे में मशरूम उत्पादन कृषकों के लिए बेहतर साबित हो सकता है।

भोजनावकाश के बाद मशरूम प्रशिक्षक अंजन कुमार साहा, कमलेश कुमार, राज कुमार, विश्वविद्यालय के कृषि संकायाध्यक्ष डॉ अरविंद कुमार, विभागाध्यक्ष डॉ सत्यप्रकाश विश्वकर्मा के माध्यम से सभी प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की खेती को लेकर बताए गए तरीके को प्रायोगिक तौर पर प्रशिक्षित किया गया। कार्यक्रम के दूसरे दिन बीते शुक्रवार को भी पादप रोग विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय गढ़वा के कृषि वैज्ञानिक ने भी प्रशिक्षणार्थियों को जहरीला और खाने योग्य मशरूम को व्यवहारिक रूप से पहचानने की विधि बताई। साथ ही इससे संबंधित भ्रांतियों का भी जिक्र किया। सभी प्रशिक्षणार्थियों ने तीन दिवसीय कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम को अहम बताया। अंत में कृषि विभाग के विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए, जिसे मौजूद लोगों ने काफी सराहा। मंच संचालन सहायक प्राध्यापिका फरहीन सिद्दीकी ने किया।

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