रात के डेढ़ बजे एक व्हाट्सएप मेसेज आता है कि सरायकेला में एक साहित्यिक सेमिनार है आपको मंच संचालन करना है। कार्यक्रम 2 दिन बाद
यानी 30 नवम्बर 2024 को है। एकबारगी पूरा दृश्य घूम गया जब कुछ ऐसा ही दो साल पहले एकाएक फोन कर तब दुमका के उपायुक्त रहे रवि शंकर शुक्ला सर ने कहा था 2 दिन का लिटरेचर फेस्टिवल है आपको मंच संभालना है, मंच सम्भालना एक मसला है लेकिन जहां साहित्य के दिग्गज का जुटान हो वहां मेरे जैसे अनगढ़, अनपढ़ का मंच संचालन! मैंने लगभग अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि ये पाप हमसे ना कराया जाए लेकिन सर ने मेरी एक ना सुनी। और फिर लगातार 1 साल के अंतराल में 2 लिटरेचर फेस्टिवल को दुमका में होस्ट किया। दूसरे फेस्टिवल में तो मैंने मॉडरेटर की भूमिका निभाते सीने कलाकार पंकज त्रिपाठी जी से 45 मिनट ऑनलाइन संवाद भी किया था। हाँ जिक्र करना मीनाक्षी शर्मा मैम का जरूरी है।। मंच संचालन और हिंदी उनकी जबरदस्त है हम दोनों जब मंच पर होते हैं तो वो घर की बड़ी बहन की तरह घर की एक एक चीज़ करीने से सजाने वाली भूमिका में होती हैं और मेरा एक अल्हड़ छोटे भाई का सजे घर में चहलकदमी करते सबका ध्यान अपनी और लेने की भूमिका में रहती हैऔर काम निपट जाता है।
इस पूरी भूमिका को लिखने का कारण बस इतना है कि आप उस तीसरे सेमिनार के हासिल को समझ सकें जिसे एक प्रशासनिक पदाधिकारी ने कमाया है। 5 सेशन के उस सेमिनार में एक सेशन में अजब वाकया हुआ जिसने सबके आंखों के कोर को गीला कर दिया था। मैंने मंच से ही ये सोंच रखा था कि इसे जरूर लिखूंगा।
कार्यक्रम के खत्म होने पर जब मैंने विदा लेने के लिए सर को फोन किया तो सर ने कहा 2 मिनट आवास में मिलते जाइये। लाजवाब ग्रीन टी की चुश्कियों के क्रम में मुझसे जब उन्होंने पूछा कि विस्मय जी आपको सबसे अच्छा सत्र कौन सा लगा तो मैं इस घटना को छुपा गया और दूसरे सत्र को बेहतर बता दिया मुझे लगा अगर इस पर अभी बात चीत यहां हुई तो शायद मैं लिख नहीं पाऊंगा लिखने की अपनी ऊब को अगर आप ना दबा कर जाहिर कर दें तो कभी कभी लिखावट की भ्रूण हत्या हो जाती है। मुझे इस बात का अफसोस है कि तब सर मेरे झूठे जवाब से थोड़े मायूस से हुए।
देर ना करते हुए उस वाकये पर आते हैं। ये जो पूरा एक दिन का कार्यक्रम था इसमे छात्रों को वैसे साहित्यकारों, पदाधिकारियों, से रूबरू कराया जा रहा था जो बहुत नीचे के तबके से मेहनत के बल पर देश के फलक पर आए थे। कार्यक्रम का नाम ही आकांशा था “आकांक्षाएं, विंग्स ऑफ एस्पिरेशन” ।
एक सेशन रीना हंसदक का था जो आईएएस ऑफिसर हैं, झारखण्ड कैडर की है और खूंटी की रहने वाली हैं, फिलहाल गुमला में कार्यरत हैं। उनसे मंच पर साक्षात्कार चल रहा था उन्होंने बताया कि उन्हें आईएएस बनाने का सपना उनकी मां ने देखा था , मां ने इसके लिए बड़ी मेहनत की थी।पिता को लगता था इतनी कठिन परीक्षा ये नहीं पास कर पायेगी सो बेमन से साथ देते लेकिन मां को पूरा यकीन था कि बेटी आईएएस बनेगी और वही हुआ। पूरा नगर भवन स्थानीय आईएएस को सुन रहा था सबके हृदय में उस मां के लिए सम्मान का भाव था ।तभी छात्रों से सवाल जवाब के लिए माइक नीचे दिया जाने लगा। एक छात्र ने ग्रामीण लड़कों का मुकाबला शहरी सम्पन्न छात्र से होने की परेशानी पर सवाल किया तो कोई किसी और सवाल का उत्तर चाह रहा था। इसी बीच अंतिम सवाल के लिए जब किसी से हाथ उठाने को कहा गया तो एक पतली सी लड़की ने हाथ उठाया माइक ले कर उसने कहा वो कस्तूरबा में पढ़ती है। मेरा सवाल रीना मैम से है, मैम जैसा आपने अभी बताया कि आपकी माँ ने सपने देखे तो आप आईएएस बन पायीं लेकिन मैम जिनके मां बाप ही जीवित नहीं हो फिर उनके लिए कौन सपने देखेगा? हमारे कस्तूरबा में कई लड़कियां हैं जिनके मां बाप नही है हम अनाथों के लिए सपने किसके हिस्से आएगा?
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सन्नाटे तो छा ही गए थे पूरे हॉल में मंच पर बैठी हंसदक मैम के लिए भी बड़ी मुश्किल घड़ी थी 10 मिनट तक जिस मां का जिक्र वो कर रही थी अब किसी के लिए वही ना होना एक सवाल था। उन्हें आईएएस के साक्षात्कार में भी ऐसे सवालों से पाला नहीं पड़ा होगा।
खैर एक आईएएस की तरह उन्होंने इसका जवाब दिया और बताया कि ऐसे ही छात्रों के लिए तो कस्तूरबा स्कूल बनाया गया है जहां वे पढ़ कर अपनी जिंदगी संवार सकती है। अभी वो जवाब खत्म ही कर रही थीं कि उस लड़की से माइक लेकर कस्तूरबा की ही उसकी शिक्षक ने कहा बेटी मैं तुम्हारी माँ हूँ। मेरे साथ पूरा स्कूल तुम्हारे साथ है। और जब तक तुम इस स्कूल में हो और स्कूल के बाद भी तुम मुझे अपनी माँ समझो।
मैं मंच के ऊपर से हर मिनट घट रहे इस दृश्य का साक्षी था कार्यक्रम जारी रहे सो बस इतना ही कह पाया कि हमें ऐसे ही समाज की जरूरत है जो किसी के अनाथ कहने पर उसके अपने बन जाएं।
कड़वाहट और नफरत वाले समाज नहीं चाहिए किसी को। ये उस वक़्त के दृश्य बता रहे थे क्योंकि हर कोई उस लड़की को यह कहना चाह रहा था कि बेटी हम हैं तुम्हारे साथ तुम खूब सपने देखो।
अब इस कार्यक्रम के हासिल पर गौर कीजिए एक प्रशासनिक पदाधिकारी जो अभी चुनाव सम्पन्न करा कर ठीक से सुस्ता भी ना पाया हो उसने एक ग्रामीण बच्चों को एक्सपोजर के लिए नगर भवन में जुटाने का निर्णय लिया। दिग्गज, लेखकों,साहित्यकारों,प्रशासनिक पदाधिकारी से उनकी रूबरू करवायी। सभी के आने जाने और भोजन का प्रबंध किया और हर आये छात्र को जाते समय उपहार स्वरूप एक डिक्शनरी देने का प्रबंध किया। क्या आज के आईएएस वाली जॉब में किसी ऐसे कार्यों के लिए आपने किसी पदाधिकारी को ऐसा करते देखा है?
मुझे लगता है आज के दौर के आईएएस में रवि शंकर शुक्ला जैसे पदाधिकारी विरले हैं। मजेदार ये है कि इनके साथ रहे कुछ प्रशिक्षु और अन्य अधिकारी भी इनकी राह पर हैं। गुमला के डीसी कर्ण सत्यार्थी भी दुमका लिटरेचर फेस्टिवल की तर्ज पर अपने ज़िले में ऐसी शुरुआत कर चुके हैं। सत्यार्थी जी से दुमका में मिला था तो लगा था शुक्ला जी वाला वायरस इनको भी काटेगा सत्य निकला। सरायकेला के प्रशिक्षु आईएएस रजत जी के भी इस वायरस से इन्फेक्टेड होने के आसार दिखें हैं।
शुक्ला जी 3 वर्षों में 5 लिटरेचर फेस्टिवल और ऐसे अन्य कार्यक्रम करवाने वाले शायद झारखण्ड ,बिहार, बंगाल हो सकता है देश के भी पहले अधिकारी होंगे। मेरे जीवन की सबसे आश्चर्यजनक घटनाओं में एक यह भी है कि इतने ईमानदार, सौम्य, मृदुभाषी और लाजवाब कार्यशैली वाले आईएएस सरकार की पसंद में कैसे हैं और सरकारें इन्हें उपायुक्त के रूप में ही कैसे भेजती रही, सामान्यतः ऐसा होता नही है।…….फिर लगता है ईमानदारी का एक इनाम यह भी हो🙏