(11 जनवरी, पौष शुक्ल द्वादशी, अयोध्या ‘राम मंदिर’ के प्रथम वर्षगांठ पर विशेष)
(विजय केसरी
अयोध्या में भगवान राम मंदिर शिलान्यास का देखते ही देखते एक वर्ष कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। भारत ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों के राम भक्त प्रतिदिन लाखों की संख्या में राम लला का दर्शन कर अपने को धन्य समझ रहे हैं। 22 फरवरी 2024, पौष शुक्ल द्वादशी को अयोध्या में निर्मित राम मंदिर के गर्भ गृह में भगवान राम की बाल रूप प्रतिमा का विधिवत उद्घाटन हुआ था। इस कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री सहित विभिन्न धर्मों और पंथों के मानने वाले हजारों की संख्या में अनुयाई सम्मिलित हुए थे। भारत के इतिहास में मूर्ति शिलान्यास यह पहला ऐसा कार्यक्रम था, जिसमें इतनी भारी संख्या में श्रद्धालु जुटे थे। उक्त तिथि को संपूर्ण देश में दीपावली मनाई गई थी। इस तरह की दीपावली इससे पूर्व नहीं मनाई गई थी। सभी हिन्दू घरों में पूजा अर्चना की गई थी। देश के लगभग सभी मंदिरों में विराजित देवताओं की विशेष रूप से पूजा की गई थी। आदि गुरु शंकराचार्य ने 2500 वर्ष पूर्व भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने के लिए पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण में चार सीटों का स्थापना किया था। अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति का शिलान्यास का कार्यक्रम इस परंपरा को और भी मजबूत किया था। इस शिलान्यास कार्यक्रम का एक वर्ष पूरा होने पर इस साल 11 जनवरी, पौष शुक्ल, द्वादशी को एक भव्य कार्यक्रम होने जा रहा है। इस दिन संपूर्ण देश में भगवान राम की पूजा अर्चना होने जा रही है।
भगवान राम भारतीय सांस्कृतिक एकता के प्रमुख नायक के रूप में त्रेता काल से ही प्रतिष्ठित और पूजित होते चले आ रहे हैं। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार उनका इस धरा पर आना एक निहित उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था। उनका संपूर्ण जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत था।भगवान राम ने असत्य को पराजित कर सत्य को स्थापित था। उन्होंने भारतीय संस्कृति, रीति – रिवाज, रहने -,सहन,बोलचाल, भाषा आदि को को एक नई दिशा प्रदान किया था। इसलिए भगवान राम को भारतीय सांस्कृतिक एकता के नायक रूप में भी जाना जाता है। भगवान राम की लोकप्रियता भारत सहित विश्व के कई देशों तक है । भगवान राम भारत उपमहाद्वीप के एक प्रखर, तेजस्वी, धनुर्धर, प्रतापी राजा और देवता के रूप में माने जाते हैं। इंडोनेशिया जैसे इस्लामिक में भी भगवान राम और सीता आज भी उन्होंने एक परिवार के मुखिया को कैसा होना चाहिए
देशवासियों को यह जानना चाहिए कि सन् 1528 में अयोध्या स्थित राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। संत कबीर वाल्मीकि कृत रामायण और हिन्दुओं के अन्य धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार यहीं भगवान राम का जन्म हुआ था। भारत में मुगल वंश के संस्थापक बाबर के शासनकाल में राम मंदिर को ध्वस्त कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। यह कृत्य संपूर्ण भारत की सांस्कृतिक एकता पर जबरदस्त हमला। तब का भारत कई रजवाड़ों में बंटा हुआ था। विरोध उस कालखंड में भी हुआ था, लेकिन हिंदु राजाओं में आपसी एकता नहीं रहने के कारण बाबरी मस्जिद अपनी जगह कायम रहा था। बाद के कालखंड 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ। 30 नवम्बर 1858 को बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में 25 निहंग सिखों ने बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया। उन्होंने कई दिनों तक बाबरी पर कब्जा बनाए रखा था और राम नाम का पाठ किया। उन्होंने बाबरी ढांचे पर राम नाम भी लिख दिया। लेकिन 1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा था। इस बात को लेकर अयोध्या में हिंदू और मुसलमान के बीच बराबर तनाव बना रहा था। सच्चे अर्थों में यह स्थल भगवान राम का जन्म स्थल ही था। इसलिए कोई भी हिंदू इस जगह पर समझौता नहीं करना चाहते थे। कोई भी हिंदू किस स्थल पर बाबरी मस्जिद स्वीकार नहीं कर रहे थे।
1947 में भारत आजाद हुआ था। 1951 में गर्भ गृह के अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया था सन् 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की थी। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सदस्य गण इस स्थल पर बाबरी मस्जिद कायम रखने के लिए पूरी मजबूती के साथ लड़ाई शुरू कर दिया था। वहीं दूसरी ओर 1889 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू कर दिया था 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं। बाबरी मस्जिद ध्वस्त किए जाने को लेकर 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था । लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993,को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में सत्रह साल लगा दिया था।
1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली थी ।चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। 1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया था। 2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। 2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था ।कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता। 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में सात सौ पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा था।
आगे 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। आगे देश का उच्चतम न्यायालय ने सात वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और सत्तर वर्ष बाद 30 मार्च को ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित अर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
अयोध्या विवाद में अंतिम निर्णय भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 9 नवंबर 2019 को घोषित किया गया था । सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित भूमि 2.77 एकड़ को राम जन्मभूमि हिंदू देवता राम के जन्म स्थान के रूप में प्रतिष्ठित मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट, भारत सरकार द्वारा बनाया जाने और सौंपने का आदेश दिया था । वहीं दूसरी ओर अदालत ने सरकार को उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वर्क बोर्ड को ध्वस्त बाबरी मस्जिद के बदले मस्जिद बनाने के उद्देश्य से दूसरी जगह 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का भी आदेश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद लगभग पांच वर्षों के अथक परिश्रम के बाद अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बन पाया था।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)
विजय केसरी
(कथाकार/ स्तंभकार)
पंच मंदिर चौक.
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