प्रोफेसर डाॅ केपी शर्मा
भारत की महिलाएं ही नहीं बल्कि विश्व के समस्त देशों की महिलाएं, भेद भाव का शिकार होती है।
हम जब भारत की महिलाओं की तुलना विश्व की महिलाओं से करते हैं तो जरुरी हो जाता है कि भारत की महिलाओं की भूत और वर्तमान की स्थिति को देखना पड़ेगा इनके भूत की स्थिति वर्तमान की स्थिति को नकारता है। भारत की महिलाओं की स्थिति का वर्णन प्राचीन साहित्य और विदेशी सैलानियों द्वारा भारत की नारियों के उपर उनकी लेखों में वर्णित बातों को देखना पड़ेगा। यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि विदेशों में नारियों को वही सम्मान एवं, इज्जत नहीं प्राप्त थे जो भारत में नारियों को प्राप्त थे।
भारत में नारियों की स्थिति का वर्णन मानव जाति के आदि ग्रंथ वेदों को पढ़ना पड़ेगा। हमें वेदों में कही गई कुछ बातों को अवश्य देखना पड़ेगा। दूसरे महत्वपूर्ण ग्रंथ है रामायण, महाभारत, मनुस्मृति तथा 5 BC में विदेशी यात्री मेगास्थनीज के द्वारा वर्णित महिलाओं की जो स्थिति का वर्णन किया गया है वह भी महत्वपूर्ण है।
रामायण एवं महाभारत जैसे दिव्य ग्रंथों में महिला के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पक्षों को सामने रखा है जैसे सीता जैसी सती, सावित्री चरित्र से महान को राम के द्वारा किसी के कुछ कह देने से अग्निपरीक्षा और वनवास की बात नारी के साथ उचित व्यवहार नहीं होना माना है लेकिन वाल्मीकि जी का कहना है कि सीता के कारण ही लंका और रावण का नाश हुआ इसी तरह महाभारत में द्रौपदी के साथ जो कुछ भी है वह भी महिला उत्पीडन है, उन्हें बलात् पांच पुरुषों की पत्नी बना दिया गया जबकि अर्जुन से प्रेम करती थी। लेकिन वशिष्ठ मुनि ने कहा है कि द्रौपदी के मान सम्मान पर आक्रमण के कारण कौरवों की समाप्ति हुई और कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ। मनु के वारे में कहा जाता है कि उन्होंने ने महिलाओं के अधिकार में कटौती किया और उन्हें हरेक उम्र में पुरुष को उनके अभिभावक नियुक्ति की बात लिखी है लेकिन मनुस्मृति 55 वें श्लोक में मनु ने लिखा है कि जिस परिवार में महिलाओं का मान सम्मान नहीं होता उस परिवार का नाश निश्चित है। वेदों में महिलाओं को युद्ध में भाग लेना का वर्णन है उक्त आश्य इस बात की पुष्टि इससे होती है कि मेगास्थनीज ने 5 BC में लिखा है कि चन्द्रगुप्त सुरक्षा प्रहरी के रूप में महिला नियुक्त थी इसी तरह कैकेयी को युद्ध में भाग लेने को बतलाया गया है।
हिन्दू में महिलाओं के प्रति कोई भेदभाव नहीं रहा है बल्कि उनकी पूजा जान की देवी सरस्वती धन की देवी लक्ष्मी, पवित्रता की देवी सीता, शक्ति की देवी दुर्गा, पृथ्वी को সাতে एवं
सभी नदियां तारी के रूप में पूजित आज भी हैं।
हिन्दुज्म सभी तारियों को न केवल पूजा का अधिकार देती है बल्कि पति-पत्नी एक साथ समान रूप में पूजा करते हैं।
ऐसे अनेकों हरण है कि वे ऋषिका हुई है जनेऊ पहनकर पूजा करती थी शास्त्रार्थ करती भी मंहत निभ और संकराचार्य के बीच हुए शास्त्रार्थ में भारती जज की भूमिका निभा चुकी, है ऐसे अनेको महिलाएं विदूची और शिक्षका हुई हैं।
महिलाओं में सल विवाह, बहु विवाह भी नहीं था अपने मन से पति का चुनाव भी वे करती भी बहुत विकाड़ राजा महाराजा के बीच राजनीतिक कारणों से था।
अर्थशास्त्र पुस्तक में सर्भवती महिलाओं को किसी प्रकार से प्रताड़ित करने की पूर्ण रुप हे मताही थी एवं उनकी उचित देखआल की हिदायत भी थी। महिलाओं केलिए सजा का रक्धान तीन थप्पड़ तक सीमित था।, महिलाओं को प्रताड़ना की स्थिति में पति के घर को छोड़कर जाने के अधिकार थे।
यह स्थिति धीरे धीरे बदलती गई खास कर इस्लामिक आक्रमण 1100 AD से 1700AD तक आते आते भारत में पुरुष प्रधान समाज का उदय हो गया और धीरे धीरे स्थिति बिगड़ती चली गई।
कुरोक महिला जैसे पडिलाइन रमाबाई इस स्थिति की पोर आलोचक और जाति व्यवस्था की विरोधी थी।
ब्रिटिश उपनिवेशवादी काल में एक दो कानूनी सुधारों जैसे पति की मृत्यु के बाद दुबारे शादी का अधिकार हाइकोर्ट के निर्णय के बाद उन्हें मिला इसी तरह सती प्रथा पर रोक लगा।
1920 ई तक आते आते गांधी और एनी बेसेंट की अगुआई में महिलाओं के सशक्तिकरण की लड़ाई प्रारंभ हुई, महिलाएं घर से बाहर निकल कर अपने हक की लड़ाई लड़ना प्रारंभ किया।
महात्मा गांधी ने उनका न केवल साथ दिया वल्कि उन्हें काम करने का अवसर दिया। उन्होंने माना कि अहिंसा के रास्ते से महिलाओं की लड़ाई का निराकरण नहीं होगा।
वर्तमान युग महिला सशक्तिकरण, sabai tran आंदोलन का है एक आधी आबादी की लड़ाई है दूसरा सबसे उपेक्षित वर्ग की लड़ाई है इस दिशा में देश के संविधान और शासन व्यवस्था की भूमिका का भी आकलन होना चाहिए।
ये लडाई मात्र तीसरी दुनिया की लड़ाई नहीं है वल्कि विकसित राष्ट्रों का रिकॉर्ड की भी परीक्षा होनी चाहिए।
आज संविधान दिवस मनाने के साथ-साथ देश के 75 वर्ष का लेखा जोखा भी होना चाहिए हम कहां पहुंचे और वहां पहुंचने में किसकी क्या भूमिका रही।
हमें अपने संविधान को समझना पड़ेगा कि आधी आबादी केलिए इसके अंतर्गत क्या विशेष व्यवस्था है।
संविधान हम सभी जानते हैं कि यह एक लिखित दस्तावेज है जो सभी को अपनी सीमा में रहकर काम करने को इजाजत देती है, संविधान के प्रावधान के पालन में टाल मटोल देरी या अकुशलता का परिचय तो नहीं मिलता है, क्या लीडरशिप ने अपनी कुशल भूमिका निभाई है क्योंकि समाज लीडर का ही अनुकरण करता है।
मैं भी पुरुष हूं और पुरुष प्रधान समाज में महिला सशक्तिकरण के उपर संविधान की भूमिका के उपर मुझे आंमत्रित करना न्यायोचित है या नहीं इसका जज मैं आप सभी को मानता हूं। मैं संविधान का विद्यार्थी और शिक्षक तथा व्यवहारिक राजनीति को अपनी आंखों से देखा है।
हमारा राज्य लोक कल्याणकारी है हम प्रजातंत्र और गणतंत्र है हमारे देश की स्थिति तीसरी दुनिया के एक देश की है, तीसरी दुनियां का मतलब होता है समस्या ग्रसित पिछड़ा देश खैरियत है कि हमारे देश का संविधान जिंदा है और वही संविधान आज भी हैं जिसे हमारे अंग्रजों और पूर्वजों ने हमें दिया है। हम इसे महिलाओं के संबंध में टेस्ट केस के रूप में परखेंगे।
भारत का संविधान विश्व का विस्तृत संविधान है जिसके दो प्रमुख प्रावधान मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्व है तथा इस संबंध में हमें न्यायपालिका की
भूमिका को कम महत्व का नहीं मानना चाहिए क्योंकि यह सुस्ती को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती दिखाई पड़ती है कभी कभी कार्यपालिका का भी काम करते नजर आती है सविधान में संशोधन की आवश्यकता की भी पूर्ति न्यायिक निर्णयों से करती है।
हम राष्ट्रीय आंदोलन को उसी प्रकार भारत में एक क्रांति मानते हैं जैसे फ्रांस की क्रांति थी जिससे अमृत के तीन घड़े निकले स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व, अमेरिकी क्रांति से निकला लिखित संविधान तथा अधिकार की घोषणा, भारतीय क्रांति से भी निकला लिखित संविधान, मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्व। मूल अधिकार को राज्य शासन के दुरुह प्रयोग से देश की जनता को बचाने एवं किसी के भी शोषण से स्त्री, पुरुष की रक्षा के उपाय और अस्त्र मानते हैं यह सिर्फ राज्य के शोषण से ही नहीं वल्कि तमाम वैसे तत्वों से भी हमें बचाता है जो हमारा शोषण करना चाहते हैं उन्हें ऐसा करने से रोकने के आदेश राज्य को देते हैं इसलिए मौलिक अधिकार को हम नकारात्मक तत्व भी मान सकते हैं अर्थात यह कुछ जगहों पर नकारत्मक है तो कहीं सकारात्मक भी है। वास्तव में ये ऐसा अभिलेख है जिनके सहारे हम अपने मान सम्मान के साथ प्रगति के पथ पर बढ़ सकते हैं।
मूल अधिकार समता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, शिक्षा संस्कृति और संवैधानिक उपचार के अधिकार ऐसे अधिकार है जिससे हमें आज तक वंचित रखा गया था इसके नहीं रहने से हमारा दर्जा पशु का सा होगया था, सम्पत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार बनाकर राज्य धन के समता स्थापना केलिए कार्य करने का अवसर दिया है।
प्रश्न यह उठता है कि यह महिलाओं को कैसे रक्षा करता और फायदा पहुंचाता है।
इसका जवाब है कि सबसे ज्यादा अत्याचार, लिंग भेद, योनि भेद, अशिक्षा से महिला पीड़ित हैं. यह उन्हें समानता का अधिकार दे पुरुर्षो की बराबरी में खड़ा करता है, शोषण परिवार, काम के संस्थानों में शोषण से रोकता है लेकिन उनकी पहले से स्थिति खराब है वे अत्यंत पिछड़ा वर्ग है इसलिए इन्हें बराबरी पर लाने केलिए कुछ विशेष करने की आवश्यकता है, संविधान निर्माताओं के दिमाग में ये बात थी इसलिए राज्य को इनके लिए कुछ विशेष करने का प्रावधान है।
बड़ी विडंबना है कि राज्य को जो कल्याणकारी राज्य बना सकता है, समाजवाद स्थापित कर सकता है महिला जैसे पिछड़े वर्ग जो विशेष कार्य करने है वे सभी राज्य के नीति निर्देशक तत्व में लिख दिया गया है तथा राज्य को कहा गया है कि वह कानून बनाते समय इस पर ध्यान दें, यह अधिकार मौलिक अधिकार के समान राज्य को लागू करने केलिए बाध्य नहीं किया जा सकता इसे वास्तव में मौलिक अधिकार होने चाहिए थे यही कारण है कि संविधान के 75 वर्ष हो गये हैं और हमारे स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है। आज भी हम राज्य के शासकों को माई बाप मानते हैं।
यह गौर से विचारणीय है कि सामान्य नागरिक संहिता को हिन्दू महिलाओं केलिए हो सकता है लेकिन मुस्लिम महिलाओं केलिए नहीं ऐसा कहने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे जिन्हें सोशलिस्ट कहा जाता है वह जब महिलाएं के एक वर्ग के वारे में राजनीतिक लाभ के आधार पर सोचते हैं ऐसी स्थिति में कहें तो महिलाएं की स्थिति में कैसे सुधार होगा।
नौति निर्देशक तत्व कहता है कि स्त्री पुरुष की जीविका के साधन केलिए राज्य को व्यवस्था करनी चाहिए, स्त्री पुरुष को एक समान वेतन हों यह अभी भी संविधान में सिर्फ लिखित है।
निदेशक तत्व स्त्री और मजदूरों के स्वास्थ्य केलिए विशेष व्यवस्था की बात करता है और अभी यह कोसों दूर है। महिलाओं केलिए संसद में 33% आरक्षण का कानून Post dated cheque है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के कुछ प्रावधानों को कमजोर हृदय से लागू किया गया है जैसे 14 वर्ष तक शिक्षा के अधिकार प्राइवेट संस्थानों में यह दिखावे केलिए है या लागू नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय की निद्रा जब कभी भंग होता है तो वह कार्यपालिका के रुप में काम करते हुए सड़ते हुए अनाज को बंटवाती है। केशवानंद भारती केस से न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र में वृद्धि करने में बहुत से कार्य लेलिया है सरकार पर न्यायालय का दबाव अवश्य बढ़ा है।
44वें संसोधन के द्वारा समान नागरिक संहिता लागू करने केलिए सरकारें अधिकृत है लेकिन अभी तक लागू नहीं हुआ है।
नई आर्थिक नीति ने तो महिलाओं, मजदूरों को जो कुछ भी लम्बे संघर्षों से मिला था उसे भी खोदिए है, भारत हो या चीन सभी इससे प्रभावित हुए हैं महिलाएं को मैटरनिटी लीव तक नहीं मिलता।
महिलाओं को शिक्षा मिलने से परिवार की आर्थिक स्थिति से लेकर स्वास्थ्य, बच्चों को पालने केलिए महिलाओं को प्रदान की बात करता और उचित निर्देश मिलता है।
महिलाओं की कुछ समस्याएं ऐसी है जो पुरुषों से अलग है उनकी ओर ध्यान की आवश्यकता है।
महिलाओं की समस्या की लिस्ट काफी लम्बी और लंबित है।
सरकार ने वैसे तो महिलाओं की समस्या निदान केलिए केन्द्रीय कल्याण बोर्ड, महिला और बाल विकास विभाग चनाया है इनके तो कुछ पद कुछ व्यक्ति के बैठाने केलिए बनाया गया है इनके धरातल पर कार्य नजर नहीं आते।
1993 में 73,74 वै संसोधन के दवारा स्थानीय निकार्यों में महिलाओं केलिए 33% आरक्षण की व्यवस्था किया है लेकिन यहां भी महिला अधिकार विहीन है मुखिया पति का बोर्ड चारों ओर पति लगाए घुमते फिरते हैं।
महिला सशक्तिकरण के प्रभाव से प्रगति को देख कर हम इस आंदोलन की सफलता को परख सकते हैं। जैसे घटता हुआ लिंगानुपात अनुपात में सुधार हुआ है, अस्वस्य महिलाओं की संख्या में कमी हुई है, आयुसीमा पुरुर्षों के मुकाबले बढ़े हैं। मृत्यु दर भी घटा है, विवाह आयु बढ़े हैं, गर्भधारण घटा है, साक्षरता का दर बढ़ा है, रोजगार में वृद्धि हुई है इंदिरा महिला योजना का लाभ मिला है, जागरुकता महिलाओं में बढ़ी है प्रशासनिक और नीति निर्माता के रुप में काम कर रही है। हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं यह काफी चिंता का कारण है।
कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पुरुष से अधिक है लेकिन अन्य क्षेत्रों में काफी पीछे है।
एक बात जो बहुत ज्यादा विचारणीय है कि महिलाओं के स्थिति में सुधार का बहुत बड़ा दारोमदार नेतृत्व वर्ग पर है।
आज नेतृत्व वर्ग में नरेंद्र मोदी जी हैं उनके महिला के पक्ष में शानदार काम के रिकॉर्ड हैं ऐसे ऐसे छोटे लेकिन महत्वपूर्ण काम है जिसे कोई नहीं कर सका उसे मोदी ने किया है जैसे समाज के दिमाग में महिलाओं के प्रति सोच को बदला है और महिला में आर्थिक मजबूती केलिए काम किया है।, स्वास्थ्य शिक्षा, खेल आदि क्षेत्रों में काम किया है। गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री रहते कार्य किया है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा काफी कारगर रहा है। उन्होंने महिलाओं के हजारों वर्षों के भेद भाव को ऐतिहासिक भूल बताया है। आधी जनसंख्या को देश के विकास से जोड़ना जरूरी माना और इसके लिए कार्य किए हैं। मोदी जी ने प्रेरणा देकर महिलाओं को ओलिंपिक खेलों में पुरुषों से आगे ले गये तथा सम्मानित किया है।
मोदी ने लालकिले के भाषण से लोगों के पारंपरिक गलत सोच को उजागर कर कहा की माता पिता का सारा नियंत्रण लड़कियों पर है यही नियंत्रण की आवश्यकता लड़कों पर है जिससे हिंसक और अन्य घटनाओं से बचा जा सकता है।
मुख्यमंत्री रहते पंचामृत योजना लागू कर, विद्या ही शक्ति है इसके लिए कार्य करने को 18000 गांवों में मंत्री और सरकारी पदाधिकारियों को भेज कर योजना लागू करवाया। सुकन्या समृद्धि योजना लागू किया। मुख्यमंत्री पद को छोड़ने के समय अपने बचत के पैसे को ड्राइवर और चपरासी के बच्चों की शिक्षा के लिए 25 लाख दान कर दिया। स्कूल में बच्चियों केलिए शौचालय बनाए। महिलाओं केलिए उज्ज्वला योजना लाया। वित्तीय मजबूती महिलाओ के लिए आवश्यक मानते हुए वित्त समावेशी योजना जन धन, स्टैंड अप योजना लागू किया और बैंकों में खाता खुलवाया जिससे 24 करोड़ महिलाओं का खाता खुलवाया। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से करोड़ों महिलाओं को रोजगार मिला है। मासिक धर्म के समय उपयोग होने बाले स्वच्छता उत्पाद सैनिटरी पैड वितरण करवाया, गर्भवती महिलाओं का फ्री चेक अप, टीकाकरण, डिलीवरी केलिए पैसे दिए। गर्भ Termination केलिए 24 महिने का कानून बना। रात्रि पाली में महिला सुरक्षा और बोर्ड में एक महिला डाइरेक्टर की व्यवस्था करवाया।, सैनिक स्कूल में लड़कियों के नामांकन के आदेश दिए। सर्वोच्च न्यायालय में तीन महिला न्यायाधीश नियुक्त हुए, संसद में महिला आरक्षण कानून बनाये गये। महिला राष्ट्रपति बनाया।
नरेंद्र मोदी ने एक जानकार कुशल नेता का काम किया है इसका परिणाम सभी क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है।
भारत में महिला आंदोलन के कारण बहुत से सुधार नहीं हुआ है, पुरातनपंथी के विचारों में परिवर्तन नहीं हुआ आज भी पुरातनपंथी विचार बने हुए हैं जैसे खाप आदि पंचायतों के कारनामे में देखा जा सकता है।
मानव विकास के मापदंड का थर्मामीटर स्त्री पुरुषों के व्यवहार के तुलनात्मक अध्ययन से होता है इसमें हम पीछे है हम कितना भी जांच समिति बैठा लें वह 1971 के गठित समिति Towards equality की रिपोर्ट हो आज भी महिलाओं की शिकायत है कि उनके साथ भेद भाव है आज भी समाज पुरुष प्रधान है कानून से लाख हमें अधिकार प्राप्त है आज भी पुरुष मुखिया पति, विधायक पति बनकर महिलाओ के अधिकारों को छीन रहे हैं।
पश्चिमी देशों की महिला सशक्तिकरण के प्रति व्यवहार भारत से अच्छी नहीं है भारत में हमारे शास्त्र मातृशक्ति कहकर पूजा करते हैं, धर्म कर्मकांडों को सम्पन्न करने में बराबरी में है हमारे यहां शब्दों में फुहड़ता का अभाव है भारत में मातृभूमि जिससे मातृ प्रधानता झलकती है हमारे यहां Mr और Miss, Mrs का झगड़ा नहीं है तथा शादी को वेश्यालय की संस्था नहीं माना गया है। पश्चिम में महिलाओं के सशक्तिकरण की लड़ाई हेनरी ने 1529 में शुरू किया जिसे Olype De Gauge 1792, Mary wall stove croft 1792 महिला के अधिकार पत्र की घोषणा पत्र बनाकर प्रकाशित कर किया। JS Mill 1869, Fredrick Angel 1884 सम्पति के अधिकार की मांग रखें शादी को Marrage as an institution, slavery of Women’s घोषित किया, लेकिन विदेशी ॥berat विचारक आज तक समाज को नहीं बदल पाये हैं महिलाओं को आज तक मताधिकार के अधिकार नहीं दे पा रहे हैं अरव दुनिया, मुस्लिम धर्म एवं देश महिलाओं के प्रति क्या विचार रखते हैं हमसे छिपा नहीं है भारत के भी कुछ राज नेता सशक्त महिला को नहीं देखना चाहते वे मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार नहीं देना चाहते, मार्क्स का वर्गीय संगठन अगर विश्व में कहीं दिखाई पड़ता है तो महिला वर्ग में है, दुनियां के मजदूरों एक हो का नारा नहीं चला लेकिन स्वप्रेरणा से दुनिया की महिलाएं आज एक है।
भारत में कृषि उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 60% है लेकिन भारत के जमीन पर उनकी भागीदारी 1% ही है अर्थात 1% धन की मालकिन है। अफ्रीका के कुछ देशों में लो कृषि का पूरा दारोमदार महिलाओं पर है कहीं कहीं पर तो महिलाएं का प्रतिनिधित्व पुरुषों से कम नहीं है लेकिन अफ्रीका में भी महिलाओं की स्थिति दयनीय है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के State dept की रिपोर्ट यह दर्शाने केलिए काफी है कि जिसमें कहा गया है कि 800,00 हजार लोग are trafficked across International border annually:
are women and girls and majority are forced into sex trade. क्या यह रिपोर्ट महिलाओं की स्थिति वर्तमान में क्या है इसका पोल नहीं खोलते कि हमारे प्रयास कितने सफल रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है इसके विभिन्न अंग महिलाओं की स्थिति पर अनेकों सम्मेलन और रिपोर्ट दे चुकी है सभी सम्मेलनों में महिलाओं की स्थिति पर चिंता प्रकट किए हैं। 1995 में विजींग में महिलाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी और सम्मेलन हुआ जो एक विस्तृत परिचर्चा थी इसके निष्कर्षों को निर्णय के रुप में देशों से अपील की गई कि वे उसे लागू करेंगे राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किए उसमें भारत भी है।
अगर विश्व के सभी राष्ट्र इंमादारी से कार्य करें तो महिलाएं की सदियों से चली आ रही समस्या का अंत हो जायेगा लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।
मित्रों कहने केलिए काफी कुछ है लेकिन लगता है कि महिलाओं के प्रति हमारी प्राचीन सोच प्राचीन संस्कृति की ओर लौटने की अपील करता है लगता है महर्षि दयानंद ने जो कहा था वेदों की ओर लौटो वो आज भी सामयिक नजर आते हैं।
मित्रों हम अपने राजनीतिक अनुभव और संविधान के लागू करने के तरीके और संविधान सभा के बहस को देखें तो लगता है कि संविधान निर्माताओं से बड़ी भूल हुई है कि संविधान में नीति निर्देशक तत्वों को मौलिक कर्तव्य राज्य का बनाया जाना चाहिए था तथा इसे न्यायालय को लागू करवाने के अधिकार होने चाहिए व्यक्ति केलिए Duty को मौलिक कर्तव्य बनाकर रखना चाहिए था, मौलिक अधिकार को विलोपित कर मौलिक कर्तव्य तथा राज्य का मौलिक कर्तव्य नीति निर्देशक तत्व होने चाहिए, इस काम को भारतीय संसद आसानी से दो तिहाई बहुमत से पारित कर कर सकती है राज्यों की सहमति की जरूरत नहीं है, दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि हम अपनी महिलाओं कै प्रति सोच बदलें। महिलाओं के बारे में जो सोच प्राचीन समय थी उसे पैदा करें आक्रमणकारियों की जो सोच महिलाओं के प्रति थी उस प्रभाव को हम अपने मन से निकाल दें।
अगर हम विस्तार में जायें तो महिलाओं कि मुख्य समस्या इस प्रकार है : Rape, women
genital mutilation, sex ratios, condemnation of girl child birth, better education, marriage at early stage, unequal wages, polygamy or bigamy, family violence, wife swapping, wife beating, Malnutrition, prostituition, dowry deaths, sexsual harrasment, molestation, pornography,, sex determination, abortion,, injectable contraceptive, oral peels, Sati,vulgar display of women body, political power lessnes, economic dependency, kidnapping, traffic king of
Women, judicial leniency, women are capital,, denied many posts, mediocre laxy, violence, single woman, liberalisation and neu economic policy and many more.
आप सबों ने जो समय निकाला और मेरे विचारों को गौर से पढ़ा, खासकर पुरुष वर्ग जिन्होंने मुझे पढ़ा ही नहीं वल्कि प्रोत्साहित भी किया, उसके लिए मैं तहेदिल से आभारी हूं। कोटि शहः धन्यवाद।
(लेखक हजारीबाग सुरेश कालोनी निवासी, विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग पीजी राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष व डीन और संत कोलंबा कालेज के प्रोफेसर -इन-चार्ज रह चुके हैं। वे प्रखर राजनीतिज्ञ और मुखर विश्लेषक भी हैं।)