स्वामी दिव्यज्ञान
भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत इसकी विविधता और सहिष्णुता में निहित है। संसद, जिसे “लोकतंत्र का मंदिर” कहा जाता है, वह स्थान है जहां देश के भविष्य की दिशा तय होती है। यह केवल नीतियों और कानूनों के निर्माण का मंच नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा स्थान है जहां जनता के प्रतिनिधि अपने मतभेदों के बावजूद संवाद और सहमति के माध्यम से समाधान ढूंढते हैं।
लेकिन, 19 दिसंबर 2024 को संसद में जो घटनाएं घटित हुईं, वे न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल खड़ा करती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि राजनीति किस हद तक व्यक्तिगत हमलों, हिंसा, और असंवेदनशीलता का शिकार हो चुकी है। यह दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा काला अध्याय जोड़ता है, जिसने संसदीय गरिमा को गहरी चोट पहुंचाई।
इस दिन संसद में हुए हंगामे और धक्का-मुक्की के कारण उड़ीसा के सांसद प्रताप सारंगी और उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से सांसद मुकेश सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी शारीरिक चोटें आईं। इन घटनाओं ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या हमारा राजनीतिक नेतृत्व वास्तव में लोकतंत्र की गरिमा और शिष्टाचार का पालन करने में सक्षम है।
संसद में महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा पर भी प्रश्न उठे, जब पूर्वोत्तर की एक महिला सांसद ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी उनके व्यक्तिगत क्षेत्र में अतिक्रमण करते हुए असहज स्थिति उत्पन्न कर रहे थे। यह घटना इस बात को रेखांकित करती है कि संसद में न केवल नीति निर्माण, बल्कि व्यक्तिगत गरिमा और शिष्टाचार का भी पालन होना चाहिए।
इस लेख में हम 19 दिसंबर 2024 की घटनाओं का गहराई से विश्लेषण करेंगे, जो न केवल भारतीय लोकतंत्र की गिरती मर्यादा को दर्शाती हैं, बल्कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व की जवाबदेही और नैतिकता पर भी गंभीर सवाल उठाती हैं।
संसदीय गरिमा पर संकट: 19 दिसंबर 2024 की घटनाएं
- घायल सांसद: संसदीय हिंसा का प्रभाव
संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा डॉ. भीमराव अंबेडकर पर कथित टिप्पणी के बाद कांग्रेस सांसदों ने तीव्र विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन इतना बढ़ गया कि सदन में धक्का-मुक्की शुरू हो गई, जिसमें कई सांसद गंभीर रूप से घायल हुए।
प्रताप सारंगी (उड़ीसा):
उड़ीसा के जनप्रिय भाजपा सांसद प्रताप सारंगी को इस हंगामे के दौरान गंभीर चोटें आईं। उनके स्वास्थ्य पर इसका गहरा असर हुआ और यह घटना संसदीय हिंसा के बढ़ते प्रभाव को उजागर करती है।
मुकेश सिंह (फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश) :
फर्रुखाबाद के सांसद मुकेश सिंह भी इस अप्रिय घटना के शिकार बने। शारीरिक चोटों के कारण उन्हें तत्काल चिकित्सा सुविधा दी गई।
यह तथ्य दर्शाता है कि हमारे जनप्रतिनिधि अपने मतभेदों को संवाद के माध्यम से हल करने में विफल हो रहे हैं, और संसदीय मंच अब हिंसा का अखाड़ा बनता जा रहा है।
- मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रति दुर्व्यवहार
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, जो पूर्व में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं, के साथ धक्का-मुक्की की घटना ने संसदीय शिष्टाचार और मर्यादा पर गंभीर चोट की है।
खड़गे का महत्व:
मल्लिकार्जुन खड़गे भारतीय राजनीति के एक प्रमुख और वरिष्ठ नेता हैं, जिनकी भूमिका न केवल विपक्ष के लिए बल्कि लोकतांत्रिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
संसदीय शिष्टाचार की गिरावट:
उनके साथ हुए दुर्व्यवहार ने यह स्पष्ट किया कि संसदीय मर्यादा और वरिष्ठ नेताओं के प्रति सम्मान अब गौण होता जा रहा है। यह घटना संसदीय राजनीति की गिरती स्थिति का प्रतीक है।
- महिला सांसद द्वारा राहुल गांधी के विरुद्ध शिकायत
इस घटनाक्रम में एक और गंभीर पहलू तब सामने आया, जब पूर्वोत्तर की एक महिला सांसद ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई।
क्या था आरोप?
महिला सांसद ने राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के समक्ष शिकायत की कि राहुल गांधी सदन में उनके व्यक्तिगत क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहे थे, जिससे वे असहज महसूस कर रही थीं।
संसदीय गरिमा और शिष्टाचार का उल्लंघन:
यह घटना केवल व्यक्तिगत आचरण का मामला नहीं है, बल्कि यह संसदीय गरिमा और मर्यादा के उल्लंघन को भी दर्शाती है।
- संसदीय गरिमा पर आघात
19 दिसंबर की घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारा राजनीतिक नेतृत्व लोकतांत्रिक मूल्यों और संसदीय शिष्टाचार को बनाए रखने में सक्षम है।
धक्का-मुक्की और हिंसा का चलन:
संसद, जो नीतियों पर चर्चा और बहस का स्थान है, वहां हिंसा और शारीरिक हमले का बढ़ता चलन चिंताजनक है।
महिलाओं की सुरक्षा:
महिला सांसद की शिकायत ने यह स्पष्ट किया है कि संसद जैसे प्रतिष्ठित स्थान में भी महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
- सत्ता पक्ष और विपक्ष का रवैया
इस घटनाक्रम के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ने तीखी प्रतिक्रियाएं दीं।
भाजपा का पक्ष:
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस पर संसद की कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि अमित शाह के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
कांग्रेस का पक्ष:
कांग्रेस ने इन घटनाओं को सत्ता पक्ष की हठधर्मिता और विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास बताया। उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ हुए दुर्व्यवहार और घायल सांसदों की स्थिति को लोकतंत्र के लिए हानिकारक बताया।
निष्कर्ष : संसदीय गरिमा को बहाल करना समय की मांग
भारतीय लोकतंत्र, जिसकी नींव सहमति, संवाद और समन्वय पर आधारित है, 19 दिसंबर 2024 की घटनाओं के कारण एक कठिन परीक्षा से गुजरा। संसद, जो नीति-निर्धारण और राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श का सर्वोच्च मंच है, उसे राजनीतिक संघर्ष और व्यक्तिगत हमलों का केंद्र बनते देखना दुर्भाग्यपूर्ण है।
प्रताप सारंगी और मुकेश सिंह जैसे सांसदों का घायल होना, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ दुर्व्यवहार, और महिला सांसद द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज की गई शिकायत यह दर्शाती है कि हमारे जनप्रतिनिधियों ने संसदीय मर्यादा और लोकतांत्रिक शिष्टाचार को पीछे छोड़ दिया है। यह घटनाएं केवल संसदीय गरिमा का उल्लंघन नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी संरचना पर एक गंभीर प्रहार हैं।
संसद का उद्देश्य केवल बहस और नीतियों का निर्धारण करना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मंच है जहां लोकतंत्र की आत्मा को जीवंत रखा जाता है। यह समय की मांग है कि संसद में शिष्टाचार, संयम और गरिमा को पुनः स्थापित किया जाए।
- महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा: महिला सांसद की शिकायत यह स्पष्ट करती है कि संसद में भी महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और गरिमामय वातावरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- वरिष्ठ नेताओं का सम्मान: मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ हुआ दुर्व्यवहार यह दिखाता है कि संसदीय शिष्टाचार की मर्यादा को बनाए रखने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
- हिंसा और धक्का-मुक्की पर रोक: संसद में शारीरिक हमलों और हिंसा की घटनाओं को समाप्त करने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए।
भारतीय लोकतंत्र को इन घटनाओं से सीख लेकर अपनी कमजोरियों को दूर करने की आवश्यकता है। सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर संसद की गरिमा और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
संसद, जो जनता के विश्वास का प्रतीक है, को केवल “लोकतंत्र का मंदिर” कहा जाना पर्याप्त नहीं है; इसे अपने कार्यों और मूल्यों से इस उपाधि को सार्थक भी बनाना होगा। आइए, हम यह संकल्प लें कि संसद एक बार फिर सहमति, संवाद और राष्ट्रहित के लिए काम करने का स्थान बने, न कि व्यक्तिगत और दलगत स्वार्थों का केंद्र।