प्रशासन कराएगा साफ-सफाई, डीसी की पहल पर सीओ ने किया स्थल निरीक्षण
पुरातत्व विभाग से कराया जाएगा सर्वेक्षण, विभाग को भेजी जाएगी रिपोर्ट
पाल वंश का स्तूप है या सम्राट अशोक काल का बौद्ध मठ
इस मठ में बौद्ध भिक्षु करते थे तपस्या
यहां मठ रहने के कारण क्षेत्र को कहते हैं मठवाटांड़
इस विरासत को संजोकर रखने की बताई आवश्यकता
गोला। गोला के बौद्ध मठ के दिन जल्द बहुरेंगे। इसके लिए प्रशासनिक पहल शुरू हो गई है। रामगढ़ जिले के पर्यटन स्थलों में गोला के बौद्ध मठ का उल्लेख नहीं रहने पर कई बार खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। उस खबर पर संज्ञान लेते हुए रामगढ़ के उपायुक्त चंदन कुमार ने एक टीम भेज कर बौद्ध मठ का निरीक्षण कराया। निरीक्षण के पश्चात सीओ समरेश प्रसाद भंडारी ने बौद्ध मठ में साफ-सफाई कराने के साथ बौद्ध मठ धरोहर को जांच के लिए पुरातत्व विभाग को पत्र भेजने की बात कही। इधर गोला की बीडीओ सुधा वर्मा ने निरीक्षण के पश्चात धरोहर को संजोकर रखने की बात कही है। उल्लेखनीय है कि रामगढ़ जिला निर्माण के बाद क्षेत्र के कई जगहों को पर्यटन क्षेत्र में विकसित करने के लिए नामों की सूची बनी थी। उस सूची में भी गोला के बौद्ध मठ का नाम नहीं था। ना तब था और न ही अब नाम आया। बावजूद जिला प्रशासन ने इसकी देखरेख करने की बात कही है।
झारखंड प्रदेश अंतर्गत रामगढ़ जिले के गोला में जन कोलाहल से दूर एक मठ है, जिसकी स्थिति दिनों दिन काफी बदतर होती जा रही है। यह अब ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच गया है। यह मठ रामगढ़ बोकारो मुख्य मार्ग पर गोला डीवीसी चौक से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। यहां मठ रहने के कारण क्षेत्र को मठवाटांड़ कहते हैं। इसके ध्वस्त होने के साथ ही इस मठ का अस्तित्व मिट जाएगा, जो
गोला का इतिहास है। इस विरासत को संजोकर रखने की आवश्यकता है। इसका इतिहास कोई नहीं बता पाता है, परन्तु वर्षों पूर्व क्षेत्र के अवकाश प्राप्त शिक्षक साहित्यकार भास्कर मिश्र ने एक अध्ययन में इसे बौद्ध मठ बताया है। तब से इसे बौद्ध मठ कहा जा रहा है। कई लोग इसे रानी मठ भी कहते हैं। अवकाश प्राप्त शिक्षक भास्कर मिश्र के अनुसार गोला में स्थापित बौद्ध मठ की बनावट काफी प्राचीन है। अंदाजा लगाया जाता है कि इसका निर्माण अशोक के शासनकाल में 16वीं और 17वीं शताब्दी में बौद्ध भिक्षुओं के लिए करवाया गया। लगभग 30 फीट वर्गाकर मठ में एक ही दरवाजा है। लगभग 50 फीट ऊंचे इस मठ के ऊपर का भाग मंदिरनुमा है। ऊपर जाने के लिए ऊपर से दरवाजा है। ऊपर की दीवारों में चारों ओर अनेक छोटे- छोटे छिद्र हैं। इसके निर्माण में ईंट और पत्थर दोनों का इस्तेमाल
सिख, इसाई तथा इस्लाम धर्म के अनुयायी एक साथ रहते चले आए हैं।
विभिन्न धर्मों के अनुयायी अपने लंबे समय के प्रवास के दौरान यहां भवनों, मंदिर, मस्जिद का निर्माण भी किया, जो राज्य की अनमोल विरासत के रूप में झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में अब भी विराजमान है। हजारीबाग और चतरा जिले में अनेक बौद्ध देवी देवताओं की मूर्तियां यह दर्शाती है कि यहां 12वीं शताब्दी के आसपास बौद्ध धर्म का प्रभाव था।
जमीन से लगभग 25 फीट की ऊंचाई पर कई मूर्तियां उकेरी हुई है। कई लोग इस पाल काल से जोड़ते हुए पाल वंश का स्तूप बताते हैं। कहा जाता है कि बंगाल, बिहार झारखंड क्षेत्र में पाल वंश का प्रभाव लगभग दसवीं- बारहवीं शताब्दी में रहा है। वर्तमान में इस पर बहुत से पेड़ पौधे उग आए हैं, जो इसे क्षतिग्रस्त कर रहे हैं तथा समय के प्रभाव से भी यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आ चुका है। इसके विकास से झारखंड के प्राचीन इतिहास में इसे स्थापित किया जा सकता है और इसका इस्तेमाल पर्यटन क्षेत्र के रूप में हो सकता है। इस कड़ी में रामगढ़ से 24 किलोमीटर दूर गोला में अवस्थित इस धरोहर का नाम नहीं आने से क्षेत्र के लोगों में नाराजगी है। यही वजह है कि यह मठ- स्तूप मंदिर जिला प्रशासन की नजरों से कोसों दूर है। क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने कई बार खबरों के माध्यम से इस धरोहर को बचाने की मांग राज्य सरकार से की है।