हजारीबाग। “कुर्सी जब तक साथ थी, राजा जैसे ठाठ।
जांच पड़ी तो रो रहे, अब किसका दे हाथ?”
जब से वित्त विभाग की रिपोर्ट का खुलासा हुआ है, विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के खर्च पर सवाल सुलगने लगे हैं। इसके साथ ही काजू, ट्रेडमिल और महंगे उपकरणों की खरीद पर बवाल मचाने लगा है।
हाल ही में विश्वविद्यालय के खर्चों को लेकर अधिवक्ता राणा राहुल प्रताप ने कहा कि कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। अंकेक्षण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ₹8 लाख मूल्य के काजू खरीदे जाने की बात सामने आई है। यह राशि इतनी बड़ी है कि यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर इतने काजू खाए किसने और क्यों ?
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इसके अलावा, ₹61,000 की कीमत का ट्रेडमिल भी खरीदा गया, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह ‘स्वास्थ्य सुधार’ के नाम पर किया गया खर्च था। किंतु यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव में यह विश्वविद्यालय की प्राथमिकता होनी चाहिए थी ?
चिकित्सीय उपकरणों की खरीद में भी संदेहजनक आंकड़े सामने आए हैं। ₹9,000 की कीमत का एक थर्मामीटर खरीदा गया, जो सामान्य बाजार दर से कहीं अधिक महंगा प्रतीत होता है। अंकेक्षण विभाग ने इस खरीद पर आपत्ति जताई है और कुलपति आवास के लिए इन चिकित्सा उपकरणों की आवश्यकता पर भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं।
क्या यह अनियमितता की ओर इशारा करता है? इन सभी खर्चों को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन अब सवालों के घेरे में है। जांच की मांग उठ रही है कि क्या यह सरकारी धन का दुरुपयोग था या फिर कोई प्रशासनिक लापरवाही ?
अब देखना होगा कि इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार की ओर से क्या स्पष्टीकरण दिया जाता है। क्या यह केवल एक गलत अनुमानित बजट था या फिर वास्तव में इसमें कुछ अनियमितताएं छिपी हुई हैं ?
घोटाला हो या अनियमितता, धूमिल हो रही विभावि की छवि : डाॅ मिथिलेश
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एनएसयूआई के पूर्व जिलाध्यक्ष सह सीनेट और सिंडिकेट सदस्य डाॅ मिथिलेश कुमार सिंह ने कहा कि
44 लाख का घोटाला हो या अनियमितता, हर हाल में इससे विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग की छवि धूमिल हो रही है। उन्होंने कहा कि इससे विश्वविद्यालय के अधिकारियों की रईशी का पता चलता है। यहां मार महाराज का, मिर्जा खेले होली…की कहावत चरितार्थ नजर होती है। इस घपले या अनियमितता का खुलासा होना ही चाहिए। मामला सुर्खियों में आने के बाद अब तक विश्वविद्यालय प्रशासन को हरकत में आ जाना चाहिए था। रजिस्ट्रार सेक्शन से भी वक्तव्य जारी होना चाहिए था। खामोशी मामले को छिपा या दबा नहीं पाएगी। इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी तो होना ही चाहिए। विश्वविद्यालय से वीआईपी कल्चर भी खत्म होना चाहिए।