स्वामी दिव्यज्ञान
हेमंत सोरेन ने झारखंड की सत्ता में तीन-चौथाई बहुमत हासिल करके राज्य में अपनी मजबूत पकड़ और लोकप्रियता को साबित किया है। 81 में से 56 सीटों पर जीत दर्ज करके झारखंड के सबसे प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे हेमंत सोरेन ने अपने कार्यकाल में कई जनहितकारी योजनाएँ शुरू की हैं। ‘मैया सम्मान योजना’ के तहत 18 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रति माह ₹1000 देने की शुरुआत की गई, जिसे अब 11 दिसंबर से बढ़ाकर ₹2500 प्रति माह करने का ऐलान किया गया है। इसके अलावा, किसानों के लिए कर्ज माफी और बिजली उपभोक्ताओं को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देकर उन्होंने अपनी नीतियों में जनहित को प्राथमिकता दी है।
हालाँकि, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पलायन की समस्या है, जिसने झारखंड की सामाजिक और आर्थिक संरचना को प्रभावित किया है। रोजगार के अवसर पैदा कर और लोगों को उनके गृह राज्य में रोककर हेमंत सोरेन को इस चुनौती का सामना करना होगा। उनके नेतृत्व को इस बार इस दिशा में ठोस कदम उठाने की परीक्षा देनी होगी।
पलायन की स्थिति और प्रभावित जिले
झारखंड, जहाँ खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है, वहाँ रोजगार की कमी के कारण हर साल हजारों लोग पलायन करने पर मजबूर हो जाते हैं। संथाल परगना, कोयलांचल और पलामू जैसे क्षेत्र इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं।
साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका, जामताड़ा:
संथाल परगना के इन जिलों से बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और केरल जैसे राज्यों में पलायन करते हैं।
आंकड़ा: कुछ रिपोर्ट के अनुसार, इन जिलों से हर साल लगभग 50,000 लोग पलायन करते हैं।
गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, हजारीबाग:
उद्योगिक क्षेत्रों के बावजूद, इन जिलों में स्थानीय रोजगार के अवसर सीमित हैं। खनन और फैक्ट्रियों में बाहरी मजदूरों को प्राथमिकता दिए जाने से स्थानीय लोगों को बाहर जाना पड़ता है।
आंकड़ा: यहां से हर साल लगभग 35,000-40,000 लोग पलायन करते हैं।
पलामू, गढ़वा, लातेहार:
कृषि आधारित इन जिलों में सिंचाई और आधुनिक तकनीकों की कमी के कारण लोग आजीविका के लिए अन्य राज्यों का रुख करते हैं।
आंकड़ा: कुछ रिपोर्टस के मुताबिक यहाँ से हर साल लगभग 30,000 लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं।
पलायन के कारण
1. रोजगार की कमी:
स्थानीय उद्योग और रोजगार के अवसर न होने के कारण लोग मजबूरन दूसरे राज्यों में काम की तलाश में जाते हैं।
2. कृषि का कमजोर आधार:
सिंचाई सुविधाओं की कमी, उर्वरकों की अनुपलब्धता, और बाजार तक पहुँच न होने के कारण किसान खेती छोड़ रहे हैं।
3. शिक्षा और कौशल की कमी:
झारखंड में व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास के लिए आवश्यक संरचना का अभाव है, जिससे युवा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नौकरियों में पिछड़ जाते हैं।
4. असंगठित क्षेत्र की मजबूरी:
झारखंड के अधिकांश लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहाँ वेतन कम और कार्य स्थायित्व नहीं है।
हेमंत सरकार की योजनाएं और चुनौतियां
हेमंत सोरेन सरकार ने पलायन रोकने और रोजगार सृजन के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं:
बिरसा हरित ग्राम योजना:
5 लाख ग्रामीण परिवारों को फलदार पौधे देकर कृषि आधारित रोजगार सृजित किया जा रहा है।
नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना:
जल संरक्षण और सिंचाई सुविधाओं के विस्तार से कृषि क्षेत्र को मजबूत किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ग्राम गाड़ी योजना:
ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सुविधाओं के विस्तार से स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ाए जा रहे हैं।
स्टार्टअप पॉलिसी:
युवाओं को स्वरोजगार और उद्यमिता के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
आगे की राह
हेमंत सोरेन सरकार के लिए यह समय निर्णायक है। पलायन रोकने के लिए उन्हें रोजगार के अवसर बढ़ाने, शिक्षा और कौशल विकास में सुधार, और कृषि के आधुनिकीकरण पर जोर देना होगा।
स्थानीय उद्योगों का विकास:
प्रत्येक जिले की विशेषताओं के अनुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा lदेना चाहिए।
कौशल विकास कार्यक्रम:
युवाओं को उद्योग की जरूरतों के अनुसार प्रशिक्षित करना आवश्यक है।
कृषि सुधार:
किसानों को उन्नत तकनीक, सिंचाई सुविधाओं और बाजार तक सीधी पहुँच देकर कृषि क्षेत्र को मजबूत करना।
निष्कर्ष
हेमंत सोरेन सरकार ने अपने कार्यकाल में कई जनहितकारी कदम उठाए हैं, लेकिन पलायन की समस्या राज्य के विकास के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। अगर सरकार स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित करने और शिक्षा व कौशल में सुधार लाने में सफल होती है, तो यह झारखंड को विकास के नए रास्ते पर ले जा सकता है। हेमंत सोरेन का यह प्रयास उन्हें न केवल झारखंड का सबसे लोकप्रिय नेता बनाएगा, बल्कि राज्य को पलायन मुक्त झारखंड के सपने के करीब भी ले जाएगा।