हजारीबाग। झारखंड के जाने-माने कवि – कथाकार प्राणेश कुमार के निधन पर साहित्यकारों के बीच शोक की लहर फैलती चली जा है । 20 फरवरी की सुबह में प्राणेश कुमार का निधन रांची स्थित टाटा कैंसर हॉस्पिटल में हो गया। उनका जन्म रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड में 11 जनवरी 1955 में हुआ था । वे इस धरा पर 70 वर्षों तक जीवित रहे थे । 2018 से वे पेट के कैंसर से ग्रसित थे । उनकी साहित्यिक कर्म भूमि हजारीबाग और रामगढ़ जिला रही थी। उनका हिंदी साहित्य के पद्य और गद्य दोनों विधा पर अच्छी पकड़ थी। लेकिन उन्हें काव्य के क्षेत्र में ज्यादा प्रसिद्धि मिल पाई थी। प्राणेश कुमार एक संवेदनशील स्वभाव के व्यक्ति थे। उनकी यह संवेदनशीलता जीवन के अंतिम क्षणों तक बरकरार रही थी ।
प्राणेश कुमार की प्रकाशित पुस्तकों में ‘एक ही परिवेश’, “सख्त जमीन के लिए’ , ‘तुमसे मुखातिब’, ‘हंसता है सूत्रधार’,’ढाई आखर’, ‘खोया हुआ आदमी’,’जुस्जू रोशनी की’, ‘निशा का अंतिम प्रहर’, ‘सत्य का झोंका, ‘क से कविता’, ‘प्रतिनिधि कविताएं’, ‘मुंडेर पर चिड़िया’, इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवन काल में कई पुस्तकों का संपादन भी किया। ‘आम आदमी के लिए’ ‘एक गीत लिखने का मन’, ‘रोशनी की लकीरें’, ‘समकालीन कहानी’, ‘नया मिजाज’, ‘बोनेक बोल’,’लठैत की बहू’ हजारीबाग से प्रकाशित ‘युद्ध रत आम आदमी’ नमक साहित्यिक पत्रिका का दस वर्षों तक संपादन भी किया। उनकी रचनाएं देश भर के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होती रही थी। उनकी कई रचनाएं अन्य भाषाओं में भी अनुदित हुईं।
प्राणेश कुमार के निधन पर कथाकार रतन वर्मा ने कहा कि ‘आज देश ने हिंदी काव्य जगत के एक महानतम सितारा प्राणेश कुमार को खो दिया है। प्राणेश कुमार जीवन के अंतिम क्षणों तक काव्य रचना में मशगूल रहे थे।’
कथाकार टी.पी. पोद्दार ने कहा कि ‘मृत्यु से लगभग एक सप्ताह पूर्व ही प्राणेश कुमार, रतन वर्मा और मेरे समक्ष कविता का वाचन किया था। उन्होंने हम दोनों की कविताओं को सुनकर अपनी राय भी खुलकर रखी थी। इस तरह उनका जाना हिंदी साहित्य जगत के लिए एक बड़ी क्षति के समान है।
साहित्यिक संस्था ‘परिवेश’ के संयोजक विजय केसरी ने कहा कि ‘प्राणेश कुमार का संपूर्ण जीवन हिंदी कविता और कथा सृजन को समर्पित रहा था। वे एक जनवादी विचार धारा के कवि थे। उनका जनवादी पन दिखावा का नहीं बल्कि उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन एक जनवादी रचनाकार के रूप में बिताया था। उनकी कविताओं में जनवाद की रेखाएं साफ झलकती नजर आती हैं।
स्मृति शेष : नहीं रहे कवि प्राणेश कुमार, निधन पर शोक की लहर
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