KALLU BHAIYA (1956 से पान गुमटी चला रहे हैं, कल्लू चौक का नाम उनके नाम पर रखा गया है) कल्लू चौक NH-100 पर स्थित है और यह इंद्रपुरी से 1 किमी की दूरी पर कटकमसांडी और पेलावल की ओर जाने वाले रास्ते में है। कल्लू चौक में हजारीबाग का सबसे पुराना ‘पान गुमटी’ है और यह दुकान ‘कल्लू भैया’ की है। उन्होंने 1956 में केवल 12 या 13 साल की उम्र में अपनी दुकान खोली थी और दुकान तब से ही है। चौक का नाम कल्लू भैया के नाम पर रखा गया है। आइए जानते हैं कल्लू भैया के जीवन के बारे में जिन्होंने अपना पूरा जीवन कल्लू चौक पर बिताया और लगभग 60 वर्षों के अंतराल में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कल्लू चौक का नाम कैसे पड़ा? कल्लू भैया ने कहा कि, “चाहे हिन्दू हो या मुसल्मान जो भी पार करता है, बोलता है कल्लू भैया सलाम, कल्लू भैया आदाब, कल्लू भईया प्रणाम”, ऐसे उनका अभिवादन करता है। उन्होंने बताया की अहमद नाम के एक बैरिस्टर हुआ करते थे और उन्होंने चौक का नाम कल्लू चौक देने का फैसला किया। कल्लू भइया बताते हैं कि हिंदू समुदाय से एक जाने माने व्यक्ति किशोरी जी चाहते थे कि चौक का नाम ‘बजरंगबली चौक’ रखा जाए लेकिन दोनों समुदायों के लोगों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उनका यह भी कहना है कि असलम खान (पूर्व वार्ड आयुक्त) चाहते थे कि चौक का नाम खान चौक हो लेकिन लोग सहमत नहीं थे और हर कोई कल्लू के पक्ष में था और चौक का नाम कल्लू शाह चौक रखा गया था। ‘लेकिन लोग इसे कल्लू चौक कहते हैं। कल्लू चौक के 1 घर के बारे में पूछने पर, कल्लू भैया जवाब देते हैं कि, कमल इंस्पेक्टर जिस घर में रह रहे हैं वह कल्लू चौक का सबसे पुराना घर है और यह घर नेहाल मास्टर का था जो हाई स्कूल के प्रिंसिपल थे। शाम के दौरान के माहौल के बारे में पूछा गया तो, कल्लू भैया ने दोहराया कि, ये जगह पेड़ों से घिरी हुई थी और उन दिनों जंगली जानवरों को देखना एक आम घटना थी। बिजली नहीं हुआ करती थी और उन्होंने अपनी दुकान के सामने एक बांस लगाया था जिस पर वह लालटेन लटकाते थे और हर आने जाने वाला व्यक्ति जलती हुई लालटेन को देखकर राहत पाते थे। उन दिनों में, जब कोई ईमेल और टेलीफोन नहीं थे, संचार का एकमात्र माध्यम पत्र था तब सारे पत्र उनकी दूकान पे आते थे और पगमिल, मंडई, लोहसिंगना, कोलघट्टी के सभी लोगों के लिए संदर्भ का केंद्र बिंदु या पता हुआ करती थी कल्लू भइया की दुकान। । पोस्ट का उपयोग कल्लू पान दुकान पर पत्र छोड़ने के लिए किया जाता था और लोग पत्र को आसानी से प्राप्त कर लेते थे। कल्लू भैया ने सरकारी बस स्टैंड के बारे में बात की, जो साल 1960 में कल्लू चौक में पहली बार आया था और 3 साल तक वहीं रहा था। निजी बस स्टैंड 90 के दशक में कल्लू चौक पर आया था। कल्लू भैया की 3 बेटियां और 1 बेटा है, सभी ने शादी कर ली और उन्होंने अपनी छोटी ‘पान गुमटी’ से सब कुछ प्रबंधित किया। कल्लू भैया एक बहुत ही विनम्र व्यक्ति हैं और मंडाई, कोल्घट्टी, पुगमिल और लाहसिंगना (चार इलाके) के लगभग हर परिवार के बारे में जानते हैं। इसी तरह HB Live पर हज़ारीबाग के इतिहास से जुड़े किस्से छोटे।छोटे अंतराल में अपलोगों जे लिए पेश किए जाएंगे। आप भी जुड़ सकते इतिहास के इन पन्नो में अपना बहुमूल्य फीडबैक देकर और हमारा App डाउनलोड करके।