विनोबा भावे विश्वविद्यालय में 44 लाख से भी अधिक का वित्तीय घोटाला !

सरकार के वित्त विभाग की ओर से पूर्व कुलपति मुकुल नारायण देव के कार्यकाल की हुई जांच

गबन में संलिप्त सभी दोषियों को चिह्नित करने का आदेश

एक महीने में वसूली और कार्रवाई करने के दिए निर्देश

रांची/हजारीबाग। विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के पूर्व कुलपति डाॅ मुकुल नारायण देव के कार्यकाल में विश्वविद्यालय के लाखों रुपए के खर्च में अनियमितता के आरोप को झारखंड सरकार के वित्त विभाग ने जांच उपरांत सही पाया है।

इस संबंध में झारखंड सरकार के वित्त विभाग के अंकेक्षण निदेशालय ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव को संपूर्ण अंकेक्षण प्रतिवेदन समर्पित कर दिया है। साथ ही अंकेक्षण प्रतिवेदन का अनुपालन करते हुए खर्च की गई राशि की वसूली एवं दोषी व्यक्तियों को चिह्नित कर यथोचित कार्रवाई करने को कहा है। प्रतिवेदन में विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों की संलिप्तता की बात भी कही गई है। वित्त विभाग के पत्र में स्पष्ट किया गया है कि 44 लाख से भी अधिक रुपयों के दुरुपयोग किए गए हैं। यह जांच 2020 के जून से लेकर 2023 के मई महीना के बीच केवल कुलपति कार्यालय, कुलपति आवास और कुलपति के उपयोग के वाहन के ईंधन मद में किए गए खर्च पर किया गया है।

डाॅ मुकुल नारायण देव के कार्यकाल में उनकी कार्यशैली को लेकर कई प्रकार के सवाल उठते रहे हैं। यह भी कहा जाता रहा कि मुकुल नारायण देव ने विश्वविद्यालय में एक गुट बनाकर तथा अपने पहुंच के बल पर किसी प्रकार की जांच नहीं होने दी। इसी क्रम में शिकायतकर्ता ने राजभवन से शिकायत की। राजभवन ने इस पर संज्ञान लेते हुए झारखंड सरकार के वित्त विभाग को जांच करने का आदेश दिया।

विश्वविद्यालय की ओर से यह प्रतिवेदन प्राप्त करने के एक महीने के भीतर राशि की वसूली करने तथा दोषी लोगों को चिह्नित करते हुए उन पर कार्रवाई करते हुए वित्त विभाग को सूचित करने को कहा गया है।

इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह विश्वविद्यालय के आंतरिक मद के आय से किया गया है। यह राशि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों एवं उनके पठन-पाठन पर खर्च करने के लिए है। मुकुल नारायण देव ने इस राशि से खुलकर विलासिता की।

प्रतिवेदन में बताया गया है कि कुलपति के कार्यालय में अल्पाहार इत्यादि पर लगभग 8 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। वह भी उस समय जब कोरोना के कारण लंबे अवधि तक विश्वविद्यालय कार्यालय बंद रहे या लोगों का आना-जाना प्रतिबंधित रहा। रोचक पक्ष यह भी है कि मुकुल नारायण देव शायद ही कभी किसी को चाय या बिस्किट ऑफर करते थे। जांच में यह खर्च अनावश्यक एवं दोषपूर्ण पाया गया।

कुलपति आवास के रंग रोगन पर लाखों रुपए अनावश्यक खर्च किए जाने की बात कही गई है। इसमें रंग रोगन से संबंधित सामग्री की खरीद में अनियमितता पाई गई है। प्रतिवेदन में कार्य की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया गया है।

इसी प्रकार निजी कार्य हित में सरकारी वाहन के उपयोग किए जाने के फल स्वरुप बेवजह के ईंधन पर भारी भरकम खर्च को भी दोषपूर्ण बताया गया है।

डाॅ मुकुल नारायण देव के लिए इलेक्ट्रॉनिक सामान के अनावश्यक खरीद पर भी प्रतिवेदन में आपत्ति दर्ज की गई है। यह भी पाया गया है की चार महीने के अंतराल में विश्वविद्यालय के पैसे से दोबारा मोबाइल फोन की खरीद की गई है। कंप्यूटर की सुविधा रहने के बावजूद इस मद में भारी भरकम खर्च किए गए। भुगतान दुकान को नहीं करके कुलपति को किया गया है। खरीदे गए सामग्री को भंडार पंजी में अंकित नहीं किया गया है। इसी प्रकार कुलपति आवास में सीसीटीवी लगाए जाने में भारी भरकम अनियमित खर्च की बात कही गई है।

इसी प्रकार दोषपूर्ण तरीके से यात्रा भत्ता का लाभ लेने की बात भी प्रमाणित हुआ है। उपरोक्त सभी अनियमित खर्च की वसूली की बात कही गई है।

विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए एक अच्छे वाहन रहने के बावजूद भारी भरकम खर्च कर एक नए वाहन खरीदे जाने को प्रतिवेदन में पूरी तरह से अनावश्यक और आपत्तिजनक बताया गया है। कुलपति आवास में पलंग, सोफा, वाशिंग मशीन आदि सामग्रियों की खरीद के साथ-साथ महंगे चिकित्सीय उपकरण आदि पर किए गए खर्च को भी अनियमित एवं आपत्तिजनक बताया गया है।

विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थी मांग कर रहे हैं कि जब कुलपति के कार्यकाल के इतनी छोटी सी पक्ष की जांच में इतनी बड़ी संख्या में गबन पकड़ा है तो उनके कार्यकाल मे हुए सभी वित्तीय मामलों की जांच कराई जानी चाहिए। उसमें और भी बड़ा घोटाला सामने आ सकता है और उस राशि की वसूली से विश्वविद्यालय की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।

मेरे कार्यकाल में सारी खरीदारी कमेटी के माध्यम से : डाॅ मुकुल नारायण देव

विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के पूर्व कुलपति डाॅ मुकुल नारायण देव ने जांच रिपोर्ट में लागू आरोपों पर कहा कि उनके कार्यकाल में हर खरीदारी क्रम समिति के माध्यम से की गई है। इलेक्ट्रॉनिक के सभी सामान भी विश्वविद्यालय के पास ही हैं। जो भी खर्च हुए वह विश्वविद्यालय और विद्यार्थियों के हित के लिए हुए। उन्होंने व्यक्तिगत लाभ के लिए कुछ भी नहीं किया। कोविड काल में विश्वविद्यालय खुले थे। चाय-नाश्ता आदि की परंपरा पर भी काफी कुछ लगाम कसा था। वैसे भी यह व्यवस्था रजिस्ट्रार सेक्शन से होता था। उन्होंने विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पैसे बचाए और उन्हीं को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। इस संबंध में सरकार की ओर से न कोई पत्र आया है और न किसी प्रकार की जानकारी उपलब्ध कराई गई है। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि उनकी छवि को खराब किया जा सके और आगे वह वीसी के लिए कहीं अप्लाई नहीं कर सकें। उन्होंने कभी यात्रा कर राशि का दुरुपयोग नहीं किया। भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर भी विनोबा भावे विश्वविद्यालय की प्रगति के लिए ही गया। वह साइंटिस्ट रहे हैं और ईमानदारी से जीवन गुजारा है। कुछ लोगों को यह रास नहीं आ रहा है, इसलिए उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश की जा रही है।

मुकुल नारायण देव के पूरे कार्यकाल की जांच की मांग

आवेदनकर्ता चंदन सिंह के साथ-साथ विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थी मांग कर रहे हैं कि जब कुलपति के कार्यकाल की इतनी छोटी सी पक्ष की जांच में इतनी बड़ी संख्या में गबन पकड़ाया है, तो उनके कार्यकाल मे हुए सभी वित्तीय मामलों की जांच कराई जानी चाहिए। उसमें और भी बड़ा घोटाला सामने आ सकता है और उस राशि की वसूली से विश्वविद्यालय की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकती है।

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