(25 दिसंबर, बड़ा दिन : प्रभु यीशु मसीह की जयंती पर विशेष)
विजय केसरी
प्रभु यीशु मसीह प्रेम और क्षमा के सच्चे वाहक थे । प्रभु यीशु मसीह ने प्रेम और क्षमा के लिए अपना जीवन हंसते हंसते दे दिया था। उन्होंने अपने जीवन काल में जिन संदेशों को दिया था, उसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है । उन्होंने प्रेम और क्षमा का संदेश देकर दुनिया को यह बता दिया था कि क्षमा और प्रेम से लोगों को अपना बनाया जा सकता है। प्रेम और क्षमा को आत्मसात कर उनके दिलों तक प्रवेश किया जा सकता है। मरियम के गर्भ से उत्पन्न प्रभु यीशु मसीह सच्चे अर्थों में प्रेम और क्षमा के सच्चे वाहक थे। मरियम की कोख से प्रभु यीशु मसीह का प्रादुर्भाव उनकी शादी से पूर्व हुआ था। प्रभु यीशु मसीह का इस तरह जन्म लेना उनकी विशिष्टता को प्रदान करता है। उन्हें असाधारण बनाता है। जिस कालखंड में और जिन परिस्थितियों में प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ था। लोग जात – पात, धर्म के संघर्ष के बीच घिरे थे। संपूर्ण विश्ववासी नफरत की आग में जल रहे थे। लोग प्रेम और क्षमा के अर्थ को पूरी तरह भूल चुके थे। लोग अपने-अपने निजी स्वार्थ के लिए संघर्ष कर रहे थे। जान – माल की बहुत हानि हो रही थी। अविश्वास और घृणा से दुनियावासी परेशान और बेहाल हो रहे थे। लोगों का एक दूसरे के प्रति घोर अविश्वास हो गया था। लोग एक दूसरे के धन, स्त्री, भूमि, संपत्ति हड़पने में लगे हुए थे। धर्म के मूल मायने को भूल चुके थे। पशु बलि जैसी संस्कृति समाज में हावी थी। लोग अपने-अपने देवताओं को पशु बलि से खुश कर रहे थे।
इस विषम परिस्थिति में प्रभु यीशु मसीह का प्रादुर्भाव किसी खास मकसद के लिए हुआ था। वे अपने जन्म काल से ही असाधारण थे। उनका दिव्य चेहरा और वक्तव्य यह बताता था कि वे इस धरा पर कुछ खास करने के लिए आए हुए थे। जिस रात भेड़ों के बीच प्रभु यीशु मसीह का इस धरा पर प्रादुर्भाव हुआ था । सुबह में कई गड़ेरिया को प्रभु के संदेश प्राप्त हुआ था। प्रभु ने सपने में कहा था कि ‘तुम सबों को शांति, प्रेम ,क्षमा और करूणा का संदेश देने वाला ईश्वर का पुत्र यीशु मसीह का प्रादुर्भाव इस धरा पर हो गया है। आप सब उनसे मिलो और प्रेम और क्षमा का संदेश प्राप्त करो’ । प्रभु यीशु मसीह जैसे-जैसे बाल काल से युवा अवस्था की ओर बढ़ने लगे थे, उनकी प्रतिभा लोगों के सामने आने लगी थी। वे अपने धर्म गुरुओं से ऐसे – ऐसे प्रश्न कर दिया करते थे कि धर्मगुरु भी उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते थे । उन्होंने बाल काल से ही संदेश देना प्रारंभ किया था। जब वे अपनी बातों को रखते थे। संदेश सुनने वालों की भीड़ लग जाती थी। प्रभु यीशु मसीह के संदेशों में कुछ खास बात होती थी ,जो उन्हें सबसे अलग लगता था। लोग मंत्रमुग्ध होकर उनके संदेशों को सुनते थे। प्रभु यीशु मसीह के संदेशों को अपने जीवन में उतारते ही थे।
प्रभु यीशु मसीह ने स्वयं को ईश्वर का पुत्र कहा था। उन्होंने कोई नया सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किया था। उन्होंने कहा था कि ‘क्षमा करना कायरता नहीं बल्कि यह लोगों की ताकत है’ । जिस काल में प्रभु यीशु मसीह का प्रादुर्भाव हुआ था। लोग शत्रुता की आग में जल रहे थे। क्षमा तो उनके शब्दकोश से बहुत दूर चला गया था। लोग एक दूसरे को मारने पर उतारू थे। उनके संदेशों में क्षमा की प्रासंगिकता सुनकर लोगों को बहुत ही अच्छा लगा। उनके संदेशों का ऐसा प्रभाव हुआ था कि लोगों ने क्षमा को अपने जीवन में उतारा। लोगों ने महसूस किया कि क्षमा सच्चे अर्थों में बड़ी चीज है। धीरे धीरे कर प्रभु यीशु मसीह के अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई। प्रभु यीशु मसीह के निकट जो भी आते थे। बेहद शांति महसूस करते थे। प्रभु यीशु मसीह के दिव्य चेहरे को देखकर लोगों को शांति का अनुभव होता था। प्रभु यीशु मसीह ने लोगों को प्रेम का नया अर्थ बताया। उन्होंने प्रेम के महत्व को लोगों को समझाया। उन्होंने आगे कहा था कि शत्रुता और घृणा से लोगों के बीच दूरियां बढ़ती है। प्रेम से लोग एक दूसरे के करीब आते हैं। इस धरा पर जितने भी लोग हैं। सभी एक ईश्वर की संतान है।
प्रभु यीशु मसीह ने ईश्वर की व्याख्या करते हुए कहा था कि ‘प्रभु एक है। अजन्मा है। अटल है । निराकार है। प्रभु का वास प्रेम, क्षमा , दया और करुणा में होता है। प्रेम क्षमा , करूणा और दया को आत्मसात करने मात्र से अंदर में दीपज्योति का किरण फूट पड़ती है। लोग ईश्वर के करीब पहुंच जाते हैं। ईश्वर सबों के अंदर है। ईश्वर कभी अपने पुत्रों से दूर नहीं रह सकते हैं ‘। आगे प्रभु यीशु मसीह ने बताया कि प्रभु सर्वशक्तिमान है। वे अपने सभी पुत्रों से समान प्रेम करते हैं’। उन्होंने यह भी कहा था कि ‘इस धरा पर जितने भी पशु पक्षी हैं, पेड़ है, पौधे हैं। सब ईश्वर की कृपा से ही फल फूल रहे हैं। ईश्वर सभी को समान रूप से प्रेम करते हैं । जहां प्रेम हैं। दया है। क्षमा है। करुणा है। ईश्वर वहीं वास करते हैं’।
प्रभु यीशु मसीह की बातों का रोमन समाज में ऐसा असर हुआ कि लोग प्रभु यीशु मसीह से जुड़ते चले गए थे। यह समाचार रोमन के सम्राट के पास भी पहुंच रही थी। उनके मंत्रियों और सलाहकारों के तरह तरह की बातों से रोमन सम्राट भड़क उठे थे। रोमन सम्राट ने प्रभु यीशु मसीह को बिना किसी जुर्म के सिर्फ प्रेम और क्षमा का संदेश देने के लिए क्रॉस पर लटका कर किलो से ठोक देने की सजा सुना दी थी । प्रभु यीशु मसीह ने रोमन सम्राट के उक्त आदेश की अवहेलना न की थी। बल्कि उन्होंने मुस्कुराकर इस आदेश का स्वागत किया था।सिपाहियों ने प्रभु यीशु मसीह को क्रॉस में बांधकर लंबी दूरी ले चलाकर और उनके हाथ और पैरों में कीलें ठोक दी थी। प्रभु यीशु मसीह ने उनके इन हरकतों पर किसी भी तरह का एतराज नहीं किया और ना ही प्रतिकार किया था। बल्कि वे तो मुस्कुरा रहे थे। हजारों हजार की संख्या में उनके अनुयाई इस दृश्य को देख रहे थे। सबकी आंखें अश्रुपूरित हो रही थी। लेकिन रोमन सिपाहियों को जरा भी दया नहीं आ रही थी। प्रभु यीशु मसीह ने हाथ और पैर में कील ठोकने वाले सिपाहियों के प्रति यह कहा था कि हे प्रभु ! इन्हें क्षमा करना। इन्हें मालूम नहीं कि ये क्या कर रहे हैं? प्रभु यीशु मसीह यह कहकर इस दुनिया से सदा सदा के लिए विदा हो गए थे। उनकी यह बात अमर वाक्य बन गई, जो बरसों बाद भी लोगों के दिलों में बैठी हुई है ।
आज के बदली परिस्थिति में जहां कई देश साम्राज्य विस्तार पर लगे हुए हैं । उन्हें प्रभु यीशु मसीह के संदेशों को जरूर पढ़ना चाहिए ।इस वर्ष कोरोना महामारी वैश्विक स्तर पर मजबूती उपस्थिति दर्ज़ कर संपूर्ण मानव को एक होने का संदेश दिया है । सभी मानव एक ही ईश्वर की संतान है। सभी के ईश्वर एक ही है।जो सर्वशक्तिमान है। अजन्मा है। अनंत और अटल है। आज हम सबों को प्रभु यीशु मसीह के संदेश प्रेम और क्षमा को आत्मसात करने की जरूरत है।
विजय केसरी
(कथाकार / स्तंभकार)
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