अब न भेदभाव, न छिपाव-दुराव, न समन्वय का अभाव
विश्वविद्यालय में दूर होगा दुर्भाव, पहल इस बात की कि रहे समभाव
विभावि में आज 196वीं बैठक,
कुलपति करेंगे अध्यक्षता
पिछले कुलपति मुकुल नारायण देव एवं सुमन कैथरीन किस्पोट्टा तथा पिछले कुलसचिव डॉ मोख्तार आलम के कार्यकाल में बहुत ही गोपनीय तरीके से आयोजित की जाती थी सभी बैठक
भेदभाव करके एजेंडा का निर्धारण किया जाता था निर्धारण
न तो बैठक से पूर्व कार्यवृत्त की दी जाती थी जानकारी और न ही बताया जाता था निर्णय
विश्वविद्यालय तथा शिक्षक एवं छात्र हित के मुद्दे नहीं किए जाते थे शामिल
हजारीबाग। विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग में अभिषद की 196वीं बैठक चार जनवरी की अपराह्न 3:00 बजे निर्धारित है। इसमें कुल छह बिंदुओं पर विचार-विमर्श करने की अनुमति राजभवन से प्राप्त हुई है। बैठक की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डा. पवन कुमार पोद्दार करेंगे।
इसमें मद संख्या 1301, 1302 और 1303 के तहत क्रमशः 18.11.2024 को अभिषद की 195वीं बैठक में लिए गए प्रस्तावों की संपुष्टि, 16.12.2024 को आयोजित वित्त समिति की 126वीं बैठक में लिए गए प्रस्तावों का अनुमोदन, 17.12.2024 को आयोजित नव शिक्षण एवं नव संबंधन समिति की बैठक में लिए गए निर्णयों के अनुमोदन के विषय सम्मिलित है।
इसी प्रकार मद संख्या 1304 के तहत उच्च एवं तकनीकी शिक्षा निदेशालय, झारखंड सरकार से प्राप्त Statute for Finance & Account Management in the State Universities of Jharkhand के प्रारूप के अनुमोदन का प्रस्ताव है।
मद संख्या 1305 के तहत उच्च एवं तकनीकी शिक्षा निदेशालय झारखंड सरकार से प्राप्त नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत Duel Degree Programmes, Four Years Undergraduate Programmes, Multiple Entry Multiple Exit तथा Academic Bank of Credits की व्यवस्था को लागू करने संबंधी विषय को सम्मिलित किया गया है।
इसी प्रकार मद संख्या 1306 के तहत 19.01.2023 को अधिसूचित झारखंड के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शिक्षकों के प्रोन्नति से संबंधित परिनियम में संशोधन से संबंधित विनोबा भावे विश्वविद्यालय द्वारा गठित समिति के प्रस्तावों को अनुमोदित करने के विषय को सम्मिलित किया गया है।
ज्ञात हो कि पिछले कुलपति मुकुल नारायण देव एवं सुमन कैथरीन किस्पोट्टा तथा पिछले कुलसचिव डॉ मोख्तार आलम के कार्यकाल में सभी बैठक बहुत ही गोपनीय तरीके से आयोजित किए जाते थे तथा भेदभाव करके एजेंडा का निर्धारण किया जाता था। न तो बैठक से पूर्व कार्यवृत्त की जानकारी दी जाती थी और न ही बैठक के बाद इसमें लिए गए निर्णय के बारे में बताया जाता था। दोष राजभवन पर मढ़ दिया जाता था, जबकि सच्चाई यह थी कि यहां से राजभवन के अनुमोदन के लिए प्रस्ताव ही आधे-अधूरे भेजे जाते थे। विश्वविद्यालय तथा शिक्षक एवं छात्र हित के मुद्दे सम्मिलित नहीं किए जाते थे।
लंबे समय के बाद यह पहला अवसर है, जबकि बैठक से पूर्व बैठक की कार्यवृत्त को सार्वजनिक किया जा रहा है तथा जरूरी मुद्दों को भी एजेंडा में स्थान दिया गया है। प्रोफेसर पवन कुमार पोद्दार के कुलपति बनने के बाद तथा डॉ सादिक रज्जाक के कुलसचिव बनने के फलस्वरुप विश्वविद्यालय की वर्षों पुरानी स्वस्थ परंपरा को फिर से पुनर्स्थापित करने का कार्य किया गया है।